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Monday, June 8, 2020

दू-टप्पी

मैथिली गजलक भूत, भविष्य आ वर्तमान, ओकर तकनीक आ प्रगति विषयक विमर्श एकैसम सदीमे खूब भेल अछि, वा जँ कही जे वर्तमाने सदीमे ई विमर्श भेल अछि तऽ सेहो अतिशयोक्ति नहि होयत। विगत सदीक उत्तरार्द्धमे जे किछु छिट-पुट मैथिली गजल विषयक चर्च भेल से मात्र एक वृहद विमर्शक भूमिका छल, अथवा इहो कहि सकैत छी जे विगत सदीक मैथिली गजलक आलोचक-प्रत्यालोचक लोकनि आजुक विमर्शक सम्भावना तकलनि। विगत सदीसँ आइ धरि एहन जे किछु विमर्श भेल अछि तकर फलाफल थिक जे आइ मैथिली गजलकार लोकनिक मनमे गजलक काफिया सम्बन्धी नियमक अनुपालन ओ अनिवार्यताक प्रति कोनो दुविधा नहि छनि। आब काफिया-हीन रचनाकेँ गजल कहि प्रचारित करबाक प्रचलन नहि अछि। जे लोकनि पहिनहुँ एना कयलनि सेहो प्रत्यक्षतः वा परोक्षतः अपन भूल स्वीकार कयलनि अछि। संगहि एखन धरिक विमर्श एहि मान्यताकेँ सेहो खण्डित कयलक अछि जे मैथिली भाषामे गजल रचना ओ विकासक सम्भावना नहि छैक। कमसँ कम विगत दू-दशकमे मैथिली गजल प्रचुर विकास कयलक अछि।
आब मैथिली गजलकार तथा समालोचक लोकनिक बीच जाहि विषयपर मतान्तर छनि वा कही आइ गजल सम्बन्धी जे विषय चर्चाक केन्द्रमे अछि से थिक जे गजलक हेतु बहर-विधानक अनुपालन अनिवार्य अछि वा नहि? मुदा जाहि प्रकारें गजलकार लोकनि बहर-बद्ध गजलक रचना कऽ रहल छथि, ततबे नहि बहर सम्बन्धी नियम-कायदाक अध्ययन-अनुसंधान कऽ रहल छथि, ताहि आधारपर कहि सकैत छी जे निकट भविष्यमे इहो विमर्श समाप्त होयत आ सब गजलकार बहरक प्रयोग करय लगताह।
हमर व्यक्तिगत एखन धरिक गजल सम्बन्धी नियम-कायदाक जे अध्ययन आ अनुभव अछि ताहि आधारपर हमरा जनैत तकनीकि दृष्टिकोणसँ गजलक मात्र दू-टा अनिवार्य तत्व छैक, जकर अनुपालनक प्रति यदि किओ गजलकार साकांक्ष रहथि तऽ गजल रचनाक हुनकर दक्षता कालान्तरमे असीम विस्तार पाओत आ ओ अपन भाषा-साहित्यकेँ सब तरहें श्रेष्ठ गजलसँ समृद्ध कऽ सकैत छथि। ई दू-गोट बिन्दु निम्नलिखित अछिः-
1. गजल रचनाक लेल जे पहिल अनिवार्य तकनीकि तत्व अछि से थिक काफियाक नियमक अनुपालन। संगहि यदि रदीफक प्रयोग गजलकार करैत छथि तँ ओहिसँ हुनकर रचनाक लालित्य ओ प्रभाव आर बढ़ि जाइत अछि। अतः काफिया आ रदीफक प्रयोगक प्रति साकांक्ष रहथि।
2. हमरा नजरिमे गजलक दोसर जे आवश्यक तकनीकी तत्व अछि से थिक बहर अथवा छन्द-विधान। गजलक परिप्रेक्ष्यमे बहर-विधानकेँ सरलतम रूपमे एहि तरहें बूझल जा सकैत अछि जे मतलाक शेरक पहिल मिसरामे जतेक मात्रा-संख्या अछि, दोसरो मिसरामे सेहो ओतबे मात्रा-संख्या हो तथा बादक शेरक प्रत्येक मिसरामे सेहो। आब एतय यदि मात्राक्रम सेहो प्रत्येक मिसरामे समान रहत तऽ रचना आरो श्रेष्ठ कहाओत। जखन मात्राक्रम समान रहत तऽ मात्रा-समूह अथवा रुक्न अथवा गण सेहो निर्धारित होयत आ परिणामस्वरूप यति अपने आप गजलक मिसरामे स्पष्ट भऽ कऽ सोझाँ आबि जायत। मैथिली भाषाक प्रकृति ओ उच्चारण-पद्धतिक अनुसारे विभक्ति-चिन्ह सेहो ओही मात्रा-समूह अथवा रुक्नक अन्तर्गत आबय जाहि समूहमे ओकर मूल शब्द छैक।
हमरा लगैत अछि जे उपरोक्त दुनू बिन्दुपर विचार कयलाक पछाति हुनका लोकनिक धारणा सेहो गजलक बहर-सम्बन्धी नियमक प्रति बदलतनि जे एखनधरि यैह बुझैत छथि जे गजल लिखबाक लेल अरबी बहरक स्थापित नियम सभक अनुपालन करब अनिवार्य छैक।

Thursday, June 4, 2020

दू-टप्पी

पत्रकारक प्रधान धर्म होइत छैक, सत्तासँ प्रश्न करब। ओकर शासन व्यवस्थामे कतय कोन कमी छैक तकरा रेखांकित करब। सरकारक दुर्नीतिक विरुद्ध जनताकेँ चेतायब। मुदा आई पत्रकार सत्ताक बदला जनता आ विपक्षसँ प्रश्न करैत अछि। वा कहि सकैत छी जे ओ पत्रकारिता धर्म बिसरि गेल अछि। ओकरा लग आब प्रश्न करबाक लूरि नहि बाँचल छैक।
आजुक समयमे जे अपनाकेँ पत्रकार कहैत छथि, से मात्र अपन व्यक्तिगत ओ संस्थागत लाभ-हानिक चिंता करैत छथि। हुनका सत्ताक नजदीकी आ चापलूस बनबामे अधिक लाभ देखाइत छनि। आ लाभक आगाँ धर्मक कोन मोल?
आजुक समयमे पत्रकारिता केवल आ केवल मात्र एक व्यवसाय थिक। पत्रकार मात्र प्रचारक छथि। जी, विज्ञापनक एकटा मॉडल मात्र। हुनकर काज छनि, ओहि मुद्दा, ओ विषय, ओहि विचारधाराकेँ उठायब, जाहिसँ ओ सत्ताधीशक कृपापात्र बनल रहताह।
पूर्वमे सेहो एहन पत्रकार होइत छलाह। मुदा तहिया ई कुकर्म झाँपल-तोपल रहैत छल। एहन पत्रकारक संख्या कम छल तहिया। आब सबकिछु उघार अछि। निर्लज्जताक पराकाष्ठा।
लोकतंत्रमे जखन मिडियाकेँ चारिम स्तम्भ कहल गेल हेतैक तँ सबहक यैह परिकल्पना होयतनि जे पत्रकार जनता आ जन-सरोकारक पक्षकार बनताह। मुदा आई एहन भावना कोनो पत्रकारमे विरले भेटत। आई पत्रकारक उद्देश्य छनि जे सत्ताधारी नेताक सङ्ग हुनकर नजदीकी बढनि। ओहि नजदीकीक प्रयोगसँ अपन समाजमे रुतबा बढनि। आ ओहि रुतबाक बलपर ओ किछु अलभ्य प्राप्त करथि।
ई एहन समय अछि जखन जनताकेँ पत्रकारपर ओकर पत्रकारिता पर आँखि मुनि क' विश्वास नहि करबाक चाही। पत्रकार आब विश्वासपात्र नहि विश्वासघाती जीव अछि।
पत्रकारिताक एहि क्षरणक एकटा पैघ कारण छैक जे आब पत्रकार अधिकांशतः ओहन व्यक्ति सब बनैत छथि जे जीवनक अन्यान्य क्षेत्रमे असफल छथि। गामघरमे अपन आसपास एहन दर्जनों युवक लोकनि भेटि जयताह जे अच्छरकट्टु छथि मुदा हुनकर बाइकपर 'प्रेस' लिखल भेटत। जनिका सामान्य नीक-बेजायक ज्ञान छनि, जनिका अपन सामाजिक-पारिवारिक ओ राष्ट्रीय दायित्वक बोध नहि छनि, से पत्रकारिताक दायित्व सम्हारि सकताह, ई सम्भव अछि?
कतेक दुर्भाग्यपूर्ण अछि जे पत्रकारिता जे एक समयक विचारक-विद्वानक, सिद्धांतवादी समाजसेवी लोकनिक कर्त्तव्य-क्षेत्र छल, आब मूर्ख-अपाटक आ असामाजिक लोकक वृत्ति बनि गेल अछि।

Posted on FB 23.04.2020

दू-टप्पी

सामान्य जनसँ राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तरक चिन्तक लोकनि धरि एखन जाहि चिन्तनमे, जाहि खोजमे, जाहि प्रयासमे लीन छथि तकर केन्द्रमे दूइए प्रमुख विषय अछि- कोरोना महामारीसँ जीवनकेँ बचायब आ महामारीक पश्चातक जन-जीवनक संचालन। जीवनपर कोनो आपदाक कतबा असरि पड़ल तकर सटीक मूल्यांकन आपदाक घड़ी बितलाक बादहि होइत छैक। एहि प्रसंग मिथिलामे बड़ प्रचलित कहबी अछि जे बाढ़िक असरि पानि घटलाक बाद बुझबामे अबैत छैक।
महामारीसँ जीवनकेँ बचयबाक एखनधरिक जे सभसँ सटीक उपाय हमरा लोकनिक सोझाँ अछि से थिक संक्रमणसँ बचाव, आ देश-समाजमे संक्रमणक विस्तार रोकबाक लेल सरकार लग जे सभसँ कारगर तकनीकि छैक से थिक- लॉकडाउन। परिणामस्वरूप आइ लगभग पन्द्रह दिनसँ समूचा देश सरकारी आदेशानुसार तालाबंद अछि। एहिना विश्वक अनेक देशमे तालाबंदी छैक। लोक अपन-अपन घरमे बंद छथि। कारोबार ठप्प अछि। ठप्प अर्थव्यवस्थासँ आगामी समयमे जन-जीवनक त्रस्त होयब सेहो निश्चित अछि। तथापि एखन प्राथमिकता अछि जीवन बचायब।
सरकार लग संक्रमण रोकथामक हेतु जे दोसर विकल्प छैक से थिक अधिकसँ अधिक संभावित मरीजक, कमसँ कम समयमे जाँच आ संक्रमित मरीजक इलाज करब। जतेक कम समयमे जतेक अधिक जाँच होयत, बिमारीक पसार पर ओतेक नियंत्रण होयत। किन्तु सरकारो लग उपलब्ध साधनक एकटा सीमा होइत छैक। भारतमे एखन प्रतिदिन लगभग दस हजार लोकक जाँच भए रहल अछि तथा आशा कयल जा रहल अछि जे आगामी किछु दिनमे ई संख्या बढ़ि कए बीस हजार व्यक्ति प्रतिदिन तक पहुँचत। यद्यपि भारत सन विशाल देशक हिसाबे इहो अपर्याप्त सिद्ध भए सकैत अछि यदि भारतवासी स्वयं संक्रमणसँ बचबाक

दू-टप्पी

सब किओ सुनैत-बजैत छी जे- साहित्य समाजक दर्पण थिक। अर्थात् साहित्य समाजक नीक-बेजायक निष्पक्ष चित्र जन-सामान्यक बीच उपस्थित करैत अछि। यैह साहित्य जखन इतिहासक पन्नापर छपैत अछि तँ ओहिमे हम मानव सभ्यताक विकासक चित्र देखैत छी। साहित्य वर्तमानक विश्लेषण थिक, भूतकालक व्याख्याता थिक आ भविष्यक स्वप्नद्रष्टा थिक। धरि साहित्य अपन समस्त भूमिकाक सफलतापूर्वक निर्वहन करय, तकर दायित्व साहित्यकारक होइत छनि। एवं प्रकार साहित्यकारकेँ निष्पक्षतासँ अपन दायित्व निर्वहन करबाक चाहियनि, यैह हुनक धर्म थिक। आखिर कर्तव्यसँ बढ़ि आन कोन धर्म होइत छैक?
आब प्रश्न उठैत अछि जे ई निष्पक्षता की थिक। वस्तुतः निष्पक्षता न्यायक पक्षधरता थिक, उचितक समर्थन थिक, अनुचितक आलोचना थिक। निष्पक्षता पक्ष-विपक्षसँ फराक कोनो तेसर विन्दू नहि होइत अछि। निष्पक्षताक आदर्श रूपमे हमरा लोकनि सदिखन दूटा प्रतीकक उपयोग करैत छी-  हंस ओ न्यायधीश। एही दू प्रतीकक जँ निष्पक्ष कहल जाइबला क्रियापर ध्यान देब तँ हमर उपरोक्ष कथन स्पष्ट भए जायत। हंसकेँ हमरा लोकनि नीर-क्षीर विवेकी कहैत छी। मुदा हंस क्षीर-लोभी अछि। ओ दूध आ पानिकेँ अलग नहि करैत अछि, दूध ग्रहण करैत अछि आ पानि छोड़ि दैत अछि। तहिना न्याधीशक समक्ष जखन कोनो मामला अबैत छनि तँ ओ दुनू पक्ष- पक्ष आ विपक्षक जिरह सुनैत छथि, सबूत गुनैत छथि आ तकर बाद न्यायक पक्षमे, सत्यक पक्षमे ठाढ़ होइत छथि। तेँ कोनो विषम परिस्थितिमे साहित्यकारकेँ नीर-क्षीर विवेकी हंस जकाँ किंवा न्यायप्रिय न्यायधीश जकाँ सत्य ओ न्यायक पक्षमे ठाढ़ होयबाक चाहियनि। अपक्ष रहब निष्पक्षता नहि, कायरता थिक।
प्रतीक जीवनकेँ गति प्रदान करबामे अधिककाल सहायक सिद्ध होइत अछि। जीवन-यात्रामे लक्ष्य-प्राप्तिक माध्यमक

दू-टप्पी

संपूर्ण विश्व एखन एक महामारीसँ लड़ि रहल अछि। ई संकट कोनो एक देशपर नहि समूचा मानवता पर मड़रा रहल अछि। मुदा, मानवता अंततः ई युद्ध जीतत, एहिमे कोनो दू-मत नहि। कारण आजुक मानव एहन युद्ध जीतबामे सक्षम अछि। अतः प्रश्न एखन जतेक पैघ छैक जे ई महामारी रूपी काल कोना कटत, ताहिसँ पैघ प्रश्न छैक जे ई महामारीसँ हमरा लोकनि जखन अगिला किछु दिनमे उबरब तखन आगाँक बाधा-विघ्नक पार कोना पायब? आइ संसारक विचारक एहिपर मंथन कए रहल छथि। मुदा, हमरा लोकनि, भारतक जनता ओ व्यवस्था, निचैन छी जे - जे जखन हेतैक से तखन देखल जेतैक! ई सोच हमरा लोकनिक लेल कतेक सहायक, कतेक विपत्तिकारी होयत से भविष्यक गर्भमे अछि।
महामारी पसरबासँ पूर्वहुँ प्रायः हमरा लोकनि, हमर शासन-व्यवस्था, यैह मनःस्थितिमे रही आ आइ तकर परिणाम भोगि रहल छी। संपूर्ण देशमे तालाबंदी लागू अछि। जँ ससमय सचेत रहितहुँ तँ आइ स्थिति दोसरो भए सकैत छल। तालाबंदीक टटका असरि बड़ सकारात्मक छैक- महामारी पर हमरा लोकनि नियंत्रण पायब। वर्तमान परिस्थितिमे यैह सभसँ प्रभावकारी दबाइ थिक। मुदा, एकर दुष्परिणाम कदाचित ताहूसँ बढ़ि कऽ हमरा लोकनिक सोझाँ आओत। आइ विशेषज्ञ लोकनि अंदाज लगा रहल छथि जे मंदीक चपेटमे आबि कऽ भारतक कमसँ कम चारि आना उद्योग बंद भए जयतैक, आ बेरोजगारीक विकराल समस्या एतुका समाजमे पसरत। मुदा ई जे आगत समस्या अछि ताहिसँ लड़बाक लेल हमरा लोकनि कतेक तैयार छी, केहन

सामाजिकता

व्यक्तिकेँ आब समाजक डर नहि छैक। समाजक अन्तर्नियमनक प्रायः सबटा सूत्र मसकि गेल अछि। फलतः समाजिकता खत्तामे पड़ल अछि। आ जखन सामाजिकता नहि, तखन समाज कतय बाँचत, आ समाजवाद कतय भेटत? एहनामे व्यक्तिक असामाजिक होयब स्वाभाविके अछि।
तेँ, जँ असामाजिक तत्वसँ बाँचय चाहैत छी, समाजमे रहय चाहैत छी, समाजवादकेँ स्थापित देखय चाहैत छी, तँ सभसँ पहिने सामाजिकता बचबय पड़त। कोनो अनीतिक विरुद्ध समाजसँ लड़ब उचित कर्तव्य थिक मुदा समयपर समाज लेल लड़ब महान कार्य थिक।
व्यक्ति कि संस्थाक मोनमे कोनो निर्णय लैत काल जा धरि -समाज की कहत, समाज की सोचत, समाजपर एहि निर्णयक केहन आ कतेक प्रभाव पड़तैक?- आदि प्रश्न नहि जनमत आ तकर सटीक उत्तर तकबाक लिप्सा नहि जागत, ताधरि समाज, सामाजिकता आ समाजवादक सभटा सूत्र निरर्थके रहत!

Posted on FB 13.07.2019


ई पोथी बहुत दिन धरि अलमारीमे पड़ल छल। मुदा आब जखन पहिल बेर एकरा पढ़लहुँ तँ बड़ कष्ट भेल जे एतेक दिन धरि एहि पोथीक पढ़बाक सुखसँ वंचित रहलहुँ।
"कोशी प्राङ्गणक चिट्ठी" वस्तुतः एकटा अप्रतिम गद्य (हमरा तँ कोनो अद्भुत कविता जकाँ लागल) थिक, जकरा पढ़बाक, बेर-बेर पढ़बाक आ पढ़िते रहबाक इच्छा होइत अछि।
कोशीक दिव्यता, कोशीक भयंकरता, कोशीक उदारता, कोशीक कृपणता, कोशीक विराटता, कोशीक संकीर्णता, कोशीक रचना, कोशीक संहार, कोशीक स्वाभिमान, कोशीक समर्पण आदि कोशीक प्रायः समस्त चरित्रगाथा, एकर जीवनक समस्त लय, ताल, छन्द एहि पोथीक पन्नापर कुशलतापूर्वक अंकित अछि जे कौखन पाठककेँ सम्मोहित करैत करैत अछि, कौखन आतंकित करैत अछि तँ कौखन द्रवित करैत अछि।
जँ हमरा कहल पर विश्वास नहि होइत अछि तँ एकबेर अपने पढ़ि क' देखियौ!😊

Posted on FB 01.09.2018


देशक तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक आओर धार्मिक स्थिति अत्यंत अराजक छल । देशमे कोनो केन्द्रिय सत्ताक अभाव छल । धार्मिक कट्टरताक ओ जाति विभेद अपन चरमोत्कर्ष प्राप्त कयने छल । भारतक आर्थिक समृद्धिसँ आकर्षित विदेशी आक्रमणकारी स्थानीय जन-जीवनकेँ आक्रान्त कऽ चुकल छल । कुल मिलाकऽ राजनैतिक आओर सांस्कृतिक दृष्टिसँ ई संघर्षकाल छल । अतः तन्त्रवादक नामपर नारी-भोग, सुरापान, धार्मिक क्षेत्रमे आयल नैतिक स्खलन आदिकेँ दूर करबाक तथा लोककेँ पुनः भगवद्-विषयक रति दिस उन्मुख करबाक आवश्यकता विद्वत समाज मध्य अनुभव कयल जा रहल छल । एहन समयमे जयदेव भगवद्-भक्तिक अभिनव विचार ओ शैलीक प्रवर्त्तन कयलनि जाहिसँ जनताकेँ रतिभावक नव आवलम्बन प्राप्त भेल । अपन रचनाक उद्देश्य ओ महत्वकेँ रेखांकित करैत जयदेव लिखलनि-

यदि हरिस्मरणे सरसं मनो यदि विलासकलासु कुतूहलम् ।
मधुरकोमलकान्तपदावली शृणु तदा जयदेवसरस्वतीम् ।।

यदि हरि-स्मरणमे मन अछि तथा यदि विलास-कथाक प्रति कौतूहल अछि तँ जयदेवक कोमलकान्त पदावली सुनू । स्पष्ट अछि जे गीतगोविन्दक भक्ति आओर शृंगारक गठजोड़ बेस सुविचारित छल ।

Posted on FB 13.06.2017


'विकास'क नामपर गामक 'नवगछुली'केँ बाजारवादक 'अमरलत्ती' जखन गछारने जा रहल अछि, गामक हरियरी कंक्रीटक तरमे पिचाय अकाले काल-कवलित भऽ रहल अछि, तखन ओतुका जिनगी' किछु हरियरीक लोभमे शहर दिसमलकैत अछि, ओतुका गली-कूचीमे गड़कैत अछि। मुदा गामक प्रति ओकर ममता, ओकर सिनेह ओकरा बेर-बेर घूरि तकबाक लेल विवश करैत छैक । शहरक प्रपंचकेँ गामक सोझमतिया सोहान्त कहाँ पड़ैत छैक, ओ तँ चट दऽ 'अँउठी पहिराय कऽ औंठा लऽ लैत अछि', गाम, शहरक जिरात भऽ जाइत अछि।

#_ग्लोबल_गामसँ_अबैत_हकार'_पढ़ैत
Posted on FB 10.06.2017
विद्यापति तथा हुनकहिसँ प्रभावित हुनक समकालिक ओ परवर्ती कवि लोकनिक पदावलीक अवलोकन कयलापर मध्यकालीन मैथिली भाषाक एकगोट विशिष्टता सोझाँ अबैत अछि जाहिमे संस्कृत छन्दशास्त्रक नियमसँ फराक, मैथिलीक विशिष्ट उच्चारण पद्धतिसँ प्रेरित तथा छन्द-रक्षार्थ, अनेक ठाम दीर्घ स्वर (अर्थात् आ, , , , , , औ आदि) केँ आवश्यकतानुसार कखनो दीर्घ तँ कखनो लघु वर्णक रूपमे प्रयोग भेल अछि । जार्ज ग्रियर्सन अपन मैथिली क्रिस्टोमेथीमे, नगेन्द्रनाथ गुप्त विद्यापति पदावलीक भूमिकामे तथा सुकुमार सेन ब्रजबुलिक भाषा-बैशिष्ट्यपर चर्चाकरैत एहि तथ्यकेँ रेखांकित कयलनि अछि ।

खासकऽ समकालीन मैथिली गजलक परिप्रेक्ष्यमे उपरोक्त सन्दर्भ बहुत महत्वपूर्ण बुझना जाइत अछि । मैथिली गजलक बहर-संरचनामे एहिसँ सहजता आबि सकैत छैक तथा गजलक भाव बोधमे, ओकर सरसताक वृद्धि भऽ सकैत छैक ।

एहि बीच Rajeev Ranjan Mishra सँ कतोक बेर विमर्श भेल जे स्थापित नियमानुसार बहर ओ लयात्मकतामे बहुत ठाम अन्तर्विरोध उत्पन्न होइत अछि । मुदा, हमरा जनैत एहन बहुत रास अन्तर्विरोध उपरोक्त परम्परा-पालनसँ स्वतः समाप्त भऽ सकैत अछि । एहिसँ इहो सम्भव थिक जे आइ जे गजल बहर-विहीन घोषित अछि सेहो बहर-विधानक अनुरूप प्रतिष्ठित हुअय आ मैथिली गजल-परम्परा आर समृद्धिशाली बुझाय आ निकट भविष्यमे मैथिली गजल उर्दूए-हिन्दीएक गजल जकाँ नव स्वर-नव त्वराक संग उपस्थित हुअय । तेँ आवश्यकता अछि जे गजलक व्याकरणपर काज कयनिहार लोकनि, मैथिली छन्दशास्त्रक विधान देनिहार लोकनि आ भाषा विज्ञानी लोकनि एहिपर समुचित विमर्श करथि।

Posted on FB 05.01.2017

Friday, November 23, 2018

समकालीन मैथिली साहित्य

मैथिली, भौगोलिक दृष्टि से भारत से नेपाल तक विस्तृत मिथिला भू-भाग की भाषा है तथा भारत के बिहार एवं झारखण्ड प्रदेश के उनतीस जिलों में तथा नेपाल के लगभग तेरह जिलों मे मुख्यतः बोली जाती है । दोनों देशों मे करीब सात करोड़ लोग मैथिली भाषा-भाषी हैं । आधुनिक भारतीय भाषाओं के बीच मैथिली भाषा का महत्वपूर्ण स्थान है । भाषा वैज्ञानिकों के अनुसार भारोपीय भाषान्तर्गत मागधी प्राकृत की अपभ्रंश से उत्पन्न भाषाओं- मैथिली, असमिया, ओड़िया तथा बंगाली के बीच मैथिली प्राचीनतम भाषा है । सातवीं-आठवीं सदी में स्वतंत्र भाषा के रूप मे मैथिली का जो विकास हुआ वह ग्यारहवीं-बारहवीं सदी आते-आते अत्यंत परिष्कृत होकर सामने आया । मैथिली भाषा के इस आदिकालीन विकास यात्रा का सहज अनुमान ज्योतिरीश्वर ठाकुर रचित 'वर्णरत्नाकर' मे प्रयुक्त भाषा से लगाया जा सकता है । चौदहवीं-पन्द्रहवीं सदी में विद्यापति की रचनाओं के बल पर इस भाषा की लोकप्रियता शिखर पर पहुँच गई । आज मैथिली संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज हो चुकी है तथा नेपाल में इसे द्वितीय राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त है ।
सिद्ध साहित्य अथवा चर्यापद, डाक एवं घाघ वचनावली, प्राकृत-पैंगलम में प्रयुक्त मैथिली पद एवं ज्योतिरीश्वर कृत धुर्तसमागम नाटक तथा वर्णरत्नाकर नामक गद्य-ग्रन्थ मैथिली भाषा की प्राचीनतम साहित्य है । विदित हो कि वर्णरत्नाकर आधुनिक भारतीय भाषाओं उपलब्ध प्राचीनतम गद्य-ग्रंथ भी है । इस ग्रंथ की भाषा-शैली देखकर  प्रतीत होता है कि इससे पूर्व भी प्रचूर मात्रा में रचनाएँ अवश्य हुई होगी, कारण इस ग्रंथ की भाषा अत्यंत विकसित है ।
मैथिली साहित्य का मध्ययुग वस्तुतः विद्यापति युग है । कारण इस युग मे विद्यापति सबसे समर्थ रचनाकार हुए तथा समस्त पूर्वांचल में व्याप्त उनकी लोकप्रियता उन्हे निर्विवाद युगपुरुष बना दिया । मध्ययुगमे जब इस्लामी आक्रमण से आक्रांत भारतीय समाज अपनी सांस्कृतिक सुरक्षा हेतु संघर्षरत था, मिथिला के लोग अपनी सांस्कृतिक परिचिति की सुरक्षा हेतु अन्तर्मुखी हो गये थे । इसी क्रममे यहाँ परम्परागत धार्मिक मान्यताएँ एवं सभ्यता-संस्कृति आधारित आचार-विचार के पुनर्निधार्णन का प्रयास होने लगे । इस सामाजिक पुनर्संगठन मे विद्यापति तथा उनके पूर्वजों ने बहुमूल्य योगदान दिया । मगर जिन रचनाओं ने विद्यापति को युगपुरुष के रूप में स्थापित किया वह हैं उनकी पदावली । यहीं असंख्य गीति विद्यापति को मिथिला तथा इसके समीपवर्ती अन्य प्रदेशों में आश्चर्यजनक रूप से प्रतिष्ठित किया । विद्यापति के गीति की लोकप्रियता तथा समकालीन और परवर्ती साहित्यकारों पर उसके प्रभाव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि परवर्ती चार सौ वर्षों तक रचनाकार उनके काव्य-परिपाटी का अनुसरण कर रचनाएँ करते रहे, मैथिली तथा स्थानीय भाषाओं के मिश्रण से बंगाल, असम तथा ओड़िसा में एक कृत्रिम भाषा-ब्रजबुलि का निर्माण हुआ । मध्ययुग में कविकोकिल विद्यापति पूर्वी भारत की लोकभाषाओं को साहित्यिक भाषा की स्तर तक पहुँचाने वाले प्रथम रचनाकार हुए ।  उनके मैथिली पदों का गांभीर्य, अनुभूति सघनता, संगीतात्मकता, तथा भाषायी सरलता उसे कालजयी बनाती है ।
उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में मैथिली साहित्य विद्यापति के प्रभाव से मुक्त होने लगी तथा इस में आधुनिकता का प्रवेश होने लगा ।  यह कालखण्ड भारत हीं नहीं अपितु विश्व-इतिहास के लिये भी अत्यंत महत्वपूर्ण था । सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक आदि जीवन के हरेक क्षेत्र में इस समय परिवर्तन की गहमा-गहमी थी । भारतीय समाज पाश्चात्य विचारधारा से सम्पर्कित हुआ फलतः यहाँ बौद्धिक विकास की दृष्टि को गति मिला । वैज्ञानिकों ने प्रकृति का गहन अध्ययन-अनुशीलन कर मानवोपयोगी साधन का आविष्कार किया । नवीन सोच और बौद्धिकता के आगे समाज में व्याप्त रूढ़ीवादी विचार निष्प्रभावी होने लगी । वैज्ञानिक विकास ने औद्योगिक क्रान्ति का बीजारोपण किया । परिणामस्वरूप उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद का विस्तार होने लगा । प्रतिक्रिया स्वरूप समाज में नवजागरण आई और देश में स्वाधीनता आंदोलन का आरम्भ हुआ ।
उन्नीसवीं शतक के अन्तिम चरण मे नवजागरण की लौ मिथिला में पहुँची तथा बीसवीं सदी के आरम्भ तक समाज पर इसका स्पष्ट प्रभाव भी दिखने लगा । मानव सभ्यता के इतिहास में खासकर भारतीय परिप्रेक्ष्य में बीसवी सदी का आगमन ऐसे वातावरण में हुआ जब यहाँ के लोग अपनी नई आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कुछ नया करने, कुछ नया रचने के लिए छटपटा रहे थे । इस छटपटाहट की पृष्ठभूमि में थी पारम्परिक जड़ता से मुक्ति की आकांक्षा और स्वातंत्र्य चेतना । इसी संक्रमणकाल में  मैथिली पत्रकारिताक का आरम्भ हुआ तथा इसके माध्यम से मैथिली साहित्यकारों ने सामाजिक जड़ता पर प्रहार शुरू किया । साथ हीं उन्होने राष्ट्रवादी चेतना को स्वर दिया, अंग्रेजी हुकूमत के अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध समाज को जगाने का अभियान चलाया । कथा, कविता, उपन्यास, निबंध समेत प्रायः सभी विधाओं में इस समय समाज मे व्याप्त परम्परागत रूढ़ि-भंजन तथा प्रगतिकामी समाज के निर्माण हेतु लेखकों ने पृष्ठभूमि तैयार करना शुरू किया ।
जब भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन अपने चरम पर था, तभी मैथिली साहित्यधारा में नये-नये सामाजिक सरोकार का समावेश होने लगा। अन्यान्य भाषाओं की तरह मैथिली साहित्य में भी नये विचारधाराएँ मुखरित हुई, जो छायावादी, प्रगतिवादी और प्रयोगवादी प्रवृति के रूप में पश्चात विकसित होते गये । देश की राजनीतिक, धार्मिक मान्यता, अर्थव्यवस्था, सामाजिक ओ मानवीय मूल्यों में जो परिवर्तन आये, साहित्यिक पटल पर उसका चित्रण अवश्यंभावी था । इसी क्रम में युगीन जटिलता, अंतर्विरोध, वैयक्तिक अंतर्द्वन्द्व को सुलझाने तथा युग-जीवन की विसंगतियाँ एवं बिडम्बनाओं के उद्घाटन का साहित्यिक प्रयास क्रमशः 'नवलेखन' का आन्दोलनकारी स्वरूप धारण किया ।
स्वाधीनता का अनुभव भारतीय साहित्यकारों तथा नागरिकों के लिए

Sunday, February 11, 2018

साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार-2017


माननीय सभाध्यक्ष महोदय, सभा में उपस्थित प्रबुद्ध साहित्यकार तथा साहित्यप्रेमीगण, आज आप लोगों की गरिमामयी उपस्थिति के बीच स्वयं को पाकर गौरवान्वित और परम आह्लादित हूँ। मेरी कविता संग्रह "धरतीसँ अकास धरि" को साहित्य अकादेमी जैसी शीर्ष और प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था ने 'साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार-2017" से नवाजा, इसलिये मैं साहित्य अकादेमी, निर्णायक मंडल एवं चयन प्रक्रिया में शामिल सभी व्यक्तियों के प्रति हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। साथ हीं, आज मैं यह पुरस्कार उन सभी व्यक्तियों कों समर्पित करना चाहूँगा जो प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मेरी लेखन प्रक्रिया से सम्बद्ध रहे हैं अथवा सरोकार रखते हैं।


मैं क्यों लिखता हूँ, कैसे लिखता हूँ और किसके लिये लिखता हूँ? इन सभी प्रश्नों के जबाव के तौर पर मैं सिर्फ इतना कहूँगा कि जब मेरे आसपास कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होता है, जिनके समक्ष मैं अपना मनोभाव व्यक्त कर सकूँ, किन्तु मन में उपजे विचारों की अभिव्यक्ति तत्क्षण अपरिहार्य सी लगने लगती है, तब मैं कलम उठाता हूँ, तभी मैं लिखता हूँ। चूँकि ऐसी अभिव्यक्ति

Wednesday, August 31, 2016

काव्यशास्त्रीय तत्व यथा- शिल्प-बिम्ब-प्रतीकादि लोककेँ कविताक प्रति आग्रही बनबैत छैक, मुदा लोक कविताप्रेमी ओकर कथ्यक कारणे बनैत अछि । छन्दबद्ध कि छन्दहीन, तुकान्त कि अतुकान्त कोनो प्रकारक कविता लिखैत काल कथ्यक महत्ताकेँ झूस नहि बुझबाक चाहियनि कविकेँ । शिल्पक नवीनता नहि कथ्यक समकालीनता कविताकेँ आधुनिक बनबैत छैक ।
वर्त्तमान समयमे हमरा लोकनि कथ्यसँ अधिक शिल्पक आग्रही भेल जा रहल छी । तकर एकटा पैघ उदाहरण कही जे, एकैसम शताब्दीक मैथिली कविता, कोन कविता थिक, एकर स्वर ओ स्वरूपगत वैशिष्ट्य की छैक, ताहिपर समुचित विमर्श एखनधरि नहि भेल अछि ।
आइ-काल्हि नव कविगण लिखैत छथि आ तकरा यथाशीघ्र प्रिंट वा इलेक्ट्रॉनिक माध्यमे हमरा सभक सोँझा परसि दैत छथि । हमहूँ सभ ताहिमेसँ काँच-कचकुह रचनाकेँ बेराय, कविकेँ 'छपास रोग'सँ ग्रसित मानि लैत छी । ई नहि सोचैत छी जे आखिर ई रोग हुनका केना धेलकनि? ई रोग एकदम्मे नव अछि वा पहिनहुँ छल? हमरा जनैत ई रोग नव नहि अछि, पहिनहुँ छल । अन्तर एतबे आयल अछि जे आब प्रकाशन सुविधाक कारणे शीघ्र प्रकाशमे आबि जाइत अछि । पहिने तरे-तर कतेको कविकेँ अकाल-काल कवलित कयने होयत !
 मुदा, एकटा कटु सत्य इहो जे एहि रोगक पहिचान भेलाक बादहु उपचार नहि ताकल जा रहल अछि । तेँ जखन हमरा लोकनि कहैत छी जे 'छपास रोग' बढ़ि गेल अछि तखन, वस्तुतः प्रकारान्तरसँ इएह मानैत छी जे हमरा सभक सम्पादकीय-समीक्षकीय सुविधा घटल अछि ।


Posted on FB 28th June 2016

Wednesday, June 22, 2016

गामक सिमान पर

'धरतीसँ अकास धरि'क बाद हमर तीन टा पद्य-संग्रह प्रकाशित भेल- अगड़म-बगड़म, सम्भावना आ बिहुँसि रहल अछि अमलतास। अगड़म-बगड़म'मे मुख्यतः हमर प्रारम्भिक कविता सभ संकलित अछि, सम्भावना हाइकू-शेनर्यू संग्रह थिक आ बिहुँसि रहल अछि अमलतास- बाल-कविता संग्रह। हमरा लेल तीनू महत्त्वपूर्ण अछि।

मुदा, प्रायः विधा-वैविध्यक कारणे एहि तीनू पोथीक प्रकाशनक अछैतो हमर (धरतीसँ अकास धरि'क पश्चातक) काव्य-यात्राक परिचय सुधि पाठक-समीक्षक लोकनिकेँ भेटब सम्भव नहि भेल। किछु शुभेच्छुक तँ शंको जनौलनि जे कदाचित् हमर कवि बाटसँ भटकि तँ नहि गेलाह?
मुदा, हम एहन प्रयोग कयल। कारण हमरा आत्मविश्वास छल जे हमर कवि अपन बाट धयनहि अछि। 

'गामक सिमान पर' हमर कविक 'धरतीसँ अकास धरि'क बादक काव्य-यात्राक एकटा पड़ाव थिक। एहि पड़ाव पर पहुंचि अपन लक्ष्यसँ कतबा निकट अथवा दूर भेलहुँ अछि, से जनबाक जिज्ञासा अपन पाठक-समीक्षकसँ अछि। हमर (पूर्वोक्त) 'आत्मविश्वास'क औचित्य सेहो एतहि फरिछायत।


Posted on FB; 20th June 2016.

बिहुँसि रहल अछि अमलतास


हाइकू'क बंगला अनुवाद

Trishna Basak-बंगला साहित्यक नव्यतम पीढ़ीक प्रतिनिधि साहित्यकार थिकीह, जनिका मैथिली भाषा-साहित्यमे विशेष रुचि छनि। एखनधरि अनेक मैथिली रचनाक बंगला-अनुवाद कयलनि अछि। हम हिनका प्रति हार्दिक आभार प्रकट करैत छी जे हमर 'सम्भावना'क २० गोट मैथिली हाइकू'क बंगला अनुवाद कयलनि आ विगत ४३ वर्षसँ प्रकाशित होमयबला एकमात्र बंगला 'अनुवाद पत्रिका' सन प्रतिष्ठित पत्रकामे प्रकाशनार्थ पठौलनि आ सौभाग्यवश शारदीय-अंकमे प्रकाशितो भेल। ई हमरा लेल विशेष आह्लादकारी एहि हेतु सेहो अछि जे पहिल बेर हमर कोनो रचनाक अन्य भाषामे अनुवाद भेल अछि



Posted on FB; 11th Jan. 2016.

भांगकधुनकीमे‬

आइ जे अंगिकाक अकादेमी, बज्जिकाक विभाग लेल कपरफोड़ी भ' रहल अछि...किओ जोलहीसँ उर्दूक खोंइछ भरय चाहैत छथि त' किओ पचपनिया'क नामपर मैथिलीक घेंटपर छप्पन छूरी भंजैत छथि...एहि सभटा फसादक बीजारोपण तहिये भ' गेल छल, जहिया (1801 इस्वीमे) एच. टी. कोलब्रुक नामक अंग्रेज 'मिथिला अपभ्रंश' अथवा 'देसिल वयना' अथवा 'तुरुतियाना'क नामकरण एकगोट सवर्ण, हिन्दू राजाक कन्याक नामपर 'मैथिली' राखि देलनि। लगैए जखन ओ एहन साम्प्रदायिक, सामन्तवादी, जातिवादी, ब्राह्मणवादी...काज क' रहल छलाह तखन शाइत कोनो सोतिपुराक दरबज्जापर बैसल हेताह!
दुर्भाग्यवश अर्सकिन पेरी, जॉन बिम्स, ग्रियर्सन सन-सन विद्वान लोकनि सेहो बिहारी डाइलेक्टक खोज करैत-करैत भोथलाय गेलाह आ अंतत: मैथिलीएक नाह चढ़ि कछेर धयलनि!
मुदा आब समय आबि गेल अछि जे बड़का -बड़का महानुभाव लोकनि जाहि काजकेँ सम्पन्न करबासँ चूकि गेलाह, तकरा हम सभ मिलिजुलि सम्पन्न करी।
आउ, आइ होलीक शुभ अवसरपर लोढ़ी-सिलौटपर हाथ राखि, भांगक किरिया खाइ जे अपन मातृभाषामे पैसल साम्प्रदायिकता, जातिवाद, सामन्तवाद, ब्राह्मणवाद...आदिकेँ समूल नष्ट करब खाहे एहि क्रममे हमरा लोकनिक भाषिक पहिचाने किएक ने लोप भ' जाय, खाहे किएक ने हमरा लोकनिक साहित्यिक-सांस्कृतिक परिचितिए मटियामेट भ' जाए...!!

तँ आउ, सभ किओ मिलिक' एकटा एहन नव बिहारी भाषाक आविष्कार करी जकर आदिग्रन्थ 'वर्णरत्नाकर' नहि हो, जकर शीर्षपुरुष विद्यापति नहि होथि, जकर नाम मैथिली नहि हो, जकर कोनो इतिहास-भूगोलमे मिथिला नहि हो...आर जे हेतैक से हेतैक...हमरा लोकनिक टिकासन पर नचैत हिन्दीक आत्माकेँ अवश्य शांति भेटतैक!!!!



Posted on FB; 23rd March 2016.

नेपालमे मैथिलक उपेक्षा


नेपालमे मैथिलक उपेक्षाकेँ मात्र नेपालक आंतरिक समस्याक रूपमे नहि देखबाक चाही । भारतीय मिथिला क्षेत्रक ई सेहो एकटा पैघ समस्या अछि । आखिर हमरा सभक बेटी-रोटीक जे संबंध अछि, भनहि हम सभ दू-देशमे विभाजित भऽ गेल छी । जाहि निर्ममतासँ निर्दोष युवक, नेना आ स्त्रिगण सभक हत्या भऽ रहल अछि तकर प्रतिवाद भारतहुमे होयब आवश्यक अछि । तखने हमरा सभक परस्पर संबंध कायम रहत । मात्र भोज खयबा लेल नेपाल जायब आ विपत्तिमे अंतरराष्ट्रीय सीमाक बहन्ना कऽ बातकेँ टारब सर्वथा निन्दनीय अछि ।
नेपाली सरकार कोना ओतुका मैथिल समाजक अधिकार संविधानमे सुनिश्चित करत ताहि लेल भारतीय मिथिला क्षेत्रमे सेहो लोककेँ संवेदनशील होमय पड़त । ई मात्र क्षेत्रीय नहि राष्ट्रीय (भारतीय) गौरव ओ अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक संदर्भमे सेहो भारतीय दृष्टिकोणसँ महत्तवपूर्ण विषय अछि । भारत सरकारक विदेश मंत्रालय एहि विषयमे एखन धरि विशेष प्रभावशाली नहि साबित भेल अछि । ओकर प्रभाव तखनहि नेपाल सरकारपर पड़तैक जखन भारतीय मिथिला एहि मुद्दापर दलमलित होयत ।
कहय लेल हमरा सभक कयकटा ने "अंतरराष्ट्रीय" संस्था अछि मुदा, से मात्र चन्दाक धन्धा लेल, सेहो साबित भइए गेल । तेँ आब हिनको लोकनिक भरोसे बैसब उचित नहि । ई सभ कृतघ्न ओ कोढ़ि छथि ।

नेपाली साहित्यकार-पत्रकार मित्र लोकनिसँ आग्रह जे वस्तुस्थितिसँ विस्तारमे अवगत करबैत रहथि । ध्यान रहय साहित्यकार अनिवार्यतः पत्रकार होइत अछि तेँ सभ कियो अपन धर्मक निर्वाह करी । विपत्तिक सामना एकजुट भए करी ।
Posted on FB; 21st Sept. 2015.

भाषा-साहित्य

भाषा साहित्यकेँ अभिव्यक्ति दैछ । भाषा समाजकेँ अभिव्यक्ति दैछ । मुदा, ई सबटा अभिव्यक्ति साहित्य नहि थिक । अभिव्यक्तिक स्वतंत्रताक समस्त विस्तार साहित्यमे पूर्णतः समाहित नहि भ' सकैए । साहित्यक अभिव्यक्तिक अपन कोनो निजता नहियो रहैत एकर अपन स्वर आ सामर्थ्य छैक जे एकरा अभिव्यक्तिक कोनो आन माध्यमक तुलनामे अधिक सशक्त बनबैत छैक । साहित्य कोनो नारा नहि थिक । ई तँ समाजक चिन्तन थिक जे दीर्घकाल धरि प्रासंगिक रहैए ।

Posted on FB; 8th June 2015.

Friday, September 4, 2015

'मैथिली नवगीत'क परिकल्पना-सूत्र

जनकंठमे बसल मैथिली लोकगीतसँ फराक विद्यापतिकालसँ मैथिलीमे लोकभाषा ओ लोकशैलीमे , साहित्यिक गीत लिखबाक जे नवीन गीति-परंपरा आरंभ भेल से उनैसम शताब्दीक अंतधरि कायम रहल । पछाति इहो गीति सभमे अधिकांश, अत्यधिक लोकप्रियताक कारणेँ लोकगीतेक नामसँ प्रचलित भेल अछि । बादमे आधुनिक मैथिली साहित्यक प्रणेता कवीश्वर चन्दा झा ताहि समयमे गीतिक प्रचलित शैली ओ स्वरकेँ नवस्वरूपमे प्रयोग कएलनि आ एतहिसँ आधुनिक मैथिली गीतिकाव्य परंपराक उद्भव भेल ।
डॉ.रमानन्द झा "रमण" लिखैत छथि जे आचार्य रमानाथ झा मैथिली गीत परंपराकेँ दू वर्गमे बँटने छथि- प्राचीन गीत आ नवीन गीत । आब एहि 'नवीन गीत'क परिकल्पनाक पाछाँ आचार्य रमानाथ झा जी कोन आधार प्रस्तुत कएने छथि से हमरा ज्ञात नहि अछि मुदा, प्रतीत होइत अछि जे चन्दा झा ओ परवर्ती गीतकार लोकनि द्वारा जे गीति-परंपरा अपनाओल गेल अछि आ बीसम शताब्दीमे मैथिली गीतिक जे विभिन्न स्वरूपक प्रचलन भेल अछि से सभ एहिमे शामिल भेल होयत । 
डॉ. शंभुनाथ सिंह १९३५सँ १९५० धरि, हिन्दी साहित्यमे नवगीतक अंकुरण काल मानलनि अछि मुदा, एतय स्पष्ट अछि जे आधुनिक मैथिली गीतिक प्रस्फुटन उनैसम-बीसम शताब्दीक संगमेपर भेल  अतः मैथिलीक आधुनिक गीतक परिकल्पना नितान्त मौलिक अछि  लेकिन हिन्दी नवगीतक नामकरण १९५९मे "गीतांगिनी"क बाद भेल आ संभवतः एकरे प्रभावसँ मैथिलीयोमे ई शब्द प्रचलित भेल होयत । 
जखन आधुनिक मैथिली गीतक विस्तृत परिधिकेँ देखैत छी तँ "नवगीत" एकर एकगोट अंगमात्र प्रतीत होइत अछि अर्थात् जहिन आधुनिक मैथिली कवितामे पछिला सय बरखमे अनेक धाराक जन्म भेल अछि आ सभटा समग्रतामे मात्र मैथिली कविता थिक तहिना नवगीत सेहो आधुनिक मैथिली गीतिकाव्यक एकटा नव संबोधन मात्र थिक ।

नवगीत कि आधुनिक गीतिकाव्यक विवेचना करैत काल ओकर रचनाकाल, छन्दविधान एवं काव्य-तत्वपर समग्र दृष्टि राखब अनिवार्य अछि । निश्चित रूपेँ आधुनिको कालमे मैथिलीमे एहन गीत लिखल गेल होयत जे प्राचीन लोकगीत-गीतिकाव्यसँ प्रेरित अछि आ आधुनिक शैलीक अछैतो ओकर काव्यतत्व प्राचीन होयत । तहिना पारंपरिक छन्दशास्त्रक उपयोग करैत समकालीन विषय-वस्तुपर उत्कृष्ट गीतक रचना सेहो भेल होयत वा भऽ सकैत अछि । आधुनिक गीत कि नवगीतमे काव्य-तत्वक अभिनवता ओ गेयता ओकर प्राण तत्व छैक, तेँ मात्र रचनाकालक आधारपर कि छन्दशास्त्रक अनुपालनक आधारपर कोनो गीतकेँ आधुनिक कि प्राचीन कहब उचित नहि । आधुनिक मैथिली गीत कि नवगीतक सम्बन्धमे जे भ्रम पसरल अछि तकर निवारण हेतु आवश्यक अछि जे एकर काव्यशास्त्रीय विवेचन कएल जयवाक आवश्यकता अछि ।


Posted on FB; 7th Oct. 2014