देशक तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक आओर धार्मिक स्थिति अत्यंत अराजक छल । देशमे कोनो केन्द्रिय
सत्ताक अभाव छल । धार्मिक कट्टरताक ओ जाति विभेद अपन चरमोत्कर्ष प्राप्त कयने छल ।
भारतक आर्थिक समृद्धिसँ आकर्षित विदेशी आक्रमणकारी स्थानीय जन-जीवनकेँ आक्रान्त कऽ
चुकल छल । कुल मिलाकऽ राजनैतिक आओर सांस्कृतिक दृष्टिसँ ई संघर्षकाल छल । अतः तन्त्रवादक
नामपर नारी-भोग, सुरापान, धार्मिक
क्षेत्रमे आयल नैतिक स्खलन आदिकेँ दूर करबाक तथा लोककेँ पुनः भगवद्-विषयक रति दिस
उन्मुख करबाक आवश्यकता विद्वत समाज मध्य अनुभव कयल जा रहल छल । एहन समयमे जयदेव
भगवद्-भक्तिक अभिनव विचार ओ शैलीक प्रवर्त्तन कयलनि जाहिसँ जनताकेँ रतिभावक नव
आवलम्बन प्राप्त भेल । अपन रचनाक उद्देश्य ओ महत्वकेँ रेखांकित करैत जयदेव लिखलनि-
यदि हरिस्मरणे सरसं मनो यदि
विलासकलासु कुतूहलम् ।
मधुरकोमलकान्तपदावली शृणु
तदा जयदेवसरस्वतीम् ।।
यदि हरि-स्मरणमे मन अछि तथा
यदि विलास-कथाक प्रति कौतूहल अछि तँ जयदेवक कोमलकान्त पदावली सुनू । स्पष्ट अछि जे
गीतगोविन्दक भक्ति आओर शृंगारक गठजोड़ बेस सुविचारित छल ।
Posted on FB 13.06.2017
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