Thursday, June 4, 2020


देशक तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक आओर धार्मिक स्थिति अत्यंत अराजक छल । देशमे कोनो केन्द्रिय सत्ताक अभाव छल । धार्मिक कट्टरताक ओ जाति विभेद अपन चरमोत्कर्ष प्राप्त कयने छल । भारतक आर्थिक समृद्धिसँ आकर्षित विदेशी आक्रमणकारी स्थानीय जन-जीवनकेँ आक्रान्त कऽ चुकल छल । कुल मिलाकऽ राजनैतिक आओर सांस्कृतिक दृष्टिसँ ई संघर्षकाल छल । अतः तन्त्रवादक नामपर नारी-भोग, सुरापान, धार्मिक क्षेत्रमे आयल नैतिक स्खलन आदिकेँ दूर करबाक तथा लोककेँ पुनः भगवद्-विषयक रति दिस उन्मुख करबाक आवश्यकता विद्वत समाज मध्य अनुभव कयल जा रहल छल । एहन समयमे जयदेव भगवद्-भक्तिक अभिनव विचार ओ शैलीक प्रवर्त्तन कयलनि जाहिसँ जनताकेँ रतिभावक नव आवलम्बन प्राप्त भेल । अपन रचनाक उद्देश्य ओ महत्वकेँ रेखांकित करैत जयदेव लिखलनि-

यदि हरिस्मरणे सरसं मनो यदि विलासकलासु कुतूहलम् ।
मधुरकोमलकान्तपदावली शृणु तदा जयदेवसरस्वतीम् ।।

यदि हरि-स्मरणमे मन अछि तथा यदि विलास-कथाक प्रति कौतूहल अछि तँ जयदेवक कोमलकान्त पदावली सुनू । स्पष्ट अछि जे गीतगोविन्दक भक्ति आओर शृंगारक गठजोड़ बेस सुविचारित छल ।

Posted on FB 13.06.2017

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