Thursday, June 4, 2020


ई पोथी बहुत दिन धरि अलमारीमे पड़ल छल। मुदा आब जखन पहिल बेर एकरा पढ़लहुँ तँ बड़ कष्ट भेल जे एतेक दिन धरि एहि पोथीक पढ़बाक सुखसँ वंचित रहलहुँ।
"कोशी प्राङ्गणक चिट्ठी" वस्तुतः एकटा अप्रतिम गद्य (हमरा तँ कोनो अद्भुत कविता जकाँ लागल) थिक, जकरा पढ़बाक, बेर-बेर पढ़बाक आ पढ़िते रहबाक इच्छा होइत अछि।
कोशीक दिव्यता, कोशीक भयंकरता, कोशीक उदारता, कोशीक कृपणता, कोशीक विराटता, कोशीक संकीर्णता, कोशीक रचना, कोशीक संहार, कोशीक स्वाभिमान, कोशीक समर्पण आदि कोशीक प्रायः समस्त चरित्रगाथा, एकर जीवनक समस्त लय, ताल, छन्द एहि पोथीक पन्नापर कुशलतापूर्वक अंकित अछि जे कौखन पाठककेँ सम्मोहित करैत करैत अछि, कौखन आतंकित करैत अछि तँ कौखन द्रवित करैत अछि।
जँ हमरा कहल पर विश्वास नहि होइत अछि तँ एकबेर अपने पढ़ि क' देखियौ!😊

Posted on FB 01.09.2018

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