विद्यापति तथा हुनकहिसँ प्रभावित
हुनक समकालिक ओ परवर्ती कवि लोकनिक पदावलीक अवलोकन कयलापर मध्यकालीन मैथिली भाषाक
एकगोट विशिष्टता सोझाँ अबैत अछि जाहिमे संस्कृत छन्दशास्त्रक नियमसँ फराक, मैथिलीक विशिष्ट उच्चारण पद्धतिसँ प्रेरित तथा छन्द-रक्षार्थ, अनेक ठाम दीर्घ स्वर (अर्थात् आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ आदि) केँ आवश्यकतानुसार कखनो दीर्घ तँ कखनो लघु
वर्णक रूपमे प्रयोग भेल अछि । जार्ज ग्रियर्सन अपन मैथिली क्रिस्टोमेथीमे, नगेन्द्रनाथ गुप्त विद्यापति पदावलीक भूमिकामे तथा सुकुमार सेन ब्रजबुलिक
भाषा-बैशिष्ट्यपर चर्चाकरैत एहि तथ्यकेँ रेखांकित कयलनि अछि ।
खासकऽ समकालीन मैथिली गजलक
परिप्रेक्ष्यमे उपरोक्त सन्दर्भ बहुत महत्वपूर्ण बुझना जाइत अछि । मैथिली गजलक
बहर-संरचनामे एहिसँ सहजता आबि सकैत छैक तथा गजलक भाव बोधमे, ओकर सरसताक वृद्धि भऽ सकैत छैक ।
एहि बीच Rajeev
Ranjan Mishra सँ कतोक बेर विमर्श भेल जे स्थापित नियमानुसार बहर ओ
लयात्मकतामे बहुत ठाम अन्तर्विरोध उत्पन्न होइत अछि । मुदा, हमरा
जनैत एहन बहुत रास अन्तर्विरोध उपरोक्त परम्परा-पालनसँ स्वतः समाप्त भऽ सकैत अछि ।
एहिसँ इहो सम्भव थिक जे आइ जे गजल बहर-विहीन घोषित अछि सेहो बहर-विधानक अनुरूप
प्रतिष्ठित हुअय आ मैथिली गजल-परम्परा आर समृद्धिशाली बुझाय आ निकट भविष्यमे
मैथिली गजल उर्दूए-हिन्दीएक गजल जकाँ नव स्वर-नव त्वराक संग उपस्थित हुअय । तेँ
आवश्यकता अछि जे गजलक व्याकरणपर काज कयनिहार लोकनि, मैथिली
छन्दशास्त्रक विधान देनिहार लोकनि आ भाषा विज्ञानी लोकनि एहिपर समुचित विमर्श
करथि।
Posted on FB 05.01.2017
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