Wednesday, June 22, 2016

गामक सिमान पर

'धरतीसँ अकास धरि'क बाद हमर तीन टा पद्य-संग्रह प्रकाशित भेल- अगड़म-बगड़म, सम्भावना आ बिहुँसि रहल अछि अमलतास। अगड़म-बगड़म'मे मुख्यतः हमर प्रारम्भिक कविता सभ संकलित अछि, सम्भावना हाइकू-शेनर्यू संग्रह थिक आ बिहुँसि रहल अछि अमलतास- बाल-कविता संग्रह। हमरा लेल तीनू महत्त्वपूर्ण अछि।

मुदा, प्रायः विधा-वैविध्यक कारणे एहि तीनू पोथीक प्रकाशनक अछैतो हमर (धरतीसँ अकास धरि'क पश्चातक) काव्य-यात्राक परिचय सुधि पाठक-समीक्षक लोकनिकेँ भेटब सम्भव नहि भेल। किछु शुभेच्छुक तँ शंको जनौलनि जे कदाचित् हमर कवि बाटसँ भटकि तँ नहि गेलाह?
मुदा, हम एहन प्रयोग कयल। कारण हमरा आत्मविश्वास छल जे हमर कवि अपन बाट धयनहि अछि। 

'गामक सिमान पर' हमर कविक 'धरतीसँ अकास धरि'क बादक काव्य-यात्राक एकटा पड़ाव थिक। एहि पड़ाव पर पहुंचि अपन लक्ष्यसँ कतबा निकट अथवा दूर भेलहुँ अछि, से जनबाक जिज्ञासा अपन पाठक-समीक्षकसँ अछि। हमर (पूर्वोक्त) 'आत्मविश्वास'क औचित्य सेहो एतहि फरिछायत।


Posted on FB; 20th June 2016.

बिहुँसि रहल अछि अमलतास


हाइकू'क बंगला अनुवाद

Trishna Basak-बंगला साहित्यक नव्यतम पीढ़ीक प्रतिनिधि साहित्यकार थिकीह, जनिका मैथिली भाषा-साहित्यमे विशेष रुचि छनि। एखनधरि अनेक मैथिली रचनाक बंगला-अनुवाद कयलनि अछि। हम हिनका प्रति हार्दिक आभार प्रकट करैत छी जे हमर 'सम्भावना'क २० गोट मैथिली हाइकू'क बंगला अनुवाद कयलनि आ विगत ४३ वर्षसँ प्रकाशित होमयबला एकमात्र बंगला 'अनुवाद पत्रिका' सन प्रतिष्ठित पत्रकामे प्रकाशनार्थ पठौलनि आ सौभाग्यवश शारदीय-अंकमे प्रकाशितो भेल। ई हमरा लेल विशेष आह्लादकारी एहि हेतु सेहो अछि जे पहिल बेर हमर कोनो रचनाक अन्य भाषामे अनुवाद भेल अछि



Posted on FB; 11th Jan. 2016.

भांगकधुनकीमे‬

आइ जे अंगिकाक अकादेमी, बज्जिकाक विभाग लेल कपरफोड़ी भ' रहल अछि...किओ जोलहीसँ उर्दूक खोंइछ भरय चाहैत छथि त' किओ पचपनिया'क नामपर मैथिलीक घेंटपर छप्पन छूरी भंजैत छथि...एहि सभटा फसादक बीजारोपण तहिये भ' गेल छल, जहिया (1801 इस्वीमे) एच. टी. कोलब्रुक नामक अंग्रेज 'मिथिला अपभ्रंश' अथवा 'देसिल वयना' अथवा 'तुरुतियाना'क नामकरण एकगोट सवर्ण, हिन्दू राजाक कन्याक नामपर 'मैथिली' राखि देलनि। लगैए जखन ओ एहन साम्प्रदायिक, सामन्तवादी, जातिवादी, ब्राह्मणवादी...काज क' रहल छलाह तखन शाइत कोनो सोतिपुराक दरबज्जापर बैसल हेताह!
दुर्भाग्यवश अर्सकिन पेरी, जॉन बिम्स, ग्रियर्सन सन-सन विद्वान लोकनि सेहो बिहारी डाइलेक्टक खोज करैत-करैत भोथलाय गेलाह आ अंतत: मैथिलीएक नाह चढ़ि कछेर धयलनि!
मुदा आब समय आबि गेल अछि जे बड़का -बड़का महानुभाव लोकनि जाहि काजकेँ सम्पन्न करबासँ चूकि गेलाह, तकरा हम सभ मिलिजुलि सम्पन्न करी।
आउ, आइ होलीक शुभ अवसरपर लोढ़ी-सिलौटपर हाथ राखि, भांगक किरिया खाइ जे अपन मातृभाषामे पैसल साम्प्रदायिकता, जातिवाद, सामन्तवाद, ब्राह्मणवाद...आदिकेँ समूल नष्ट करब खाहे एहि क्रममे हमरा लोकनिक भाषिक पहिचाने किएक ने लोप भ' जाय, खाहे किएक ने हमरा लोकनिक साहित्यिक-सांस्कृतिक परिचितिए मटियामेट भ' जाए...!!

तँ आउ, सभ किओ मिलिक' एकटा एहन नव बिहारी भाषाक आविष्कार करी जकर आदिग्रन्थ 'वर्णरत्नाकर' नहि हो, जकर शीर्षपुरुष विद्यापति नहि होथि, जकर नाम मैथिली नहि हो, जकर कोनो इतिहास-भूगोलमे मिथिला नहि हो...आर जे हेतैक से हेतैक...हमरा लोकनिक टिकासन पर नचैत हिन्दीक आत्माकेँ अवश्य शांति भेटतैक!!!!



Posted on FB; 23rd March 2016.

नेपालमे मैथिलक उपेक्षा


नेपालमे मैथिलक उपेक्षाकेँ मात्र नेपालक आंतरिक समस्याक रूपमे नहि देखबाक चाही । भारतीय मिथिला क्षेत्रक ई सेहो एकटा पैघ समस्या अछि । आखिर हमरा सभक बेटी-रोटीक जे संबंध अछि, भनहि हम सभ दू-देशमे विभाजित भऽ गेल छी । जाहि निर्ममतासँ निर्दोष युवक, नेना आ स्त्रिगण सभक हत्या भऽ रहल अछि तकर प्रतिवाद भारतहुमे होयब आवश्यक अछि । तखने हमरा सभक परस्पर संबंध कायम रहत । मात्र भोज खयबा लेल नेपाल जायब आ विपत्तिमे अंतरराष्ट्रीय सीमाक बहन्ना कऽ बातकेँ टारब सर्वथा निन्दनीय अछि ।
नेपाली सरकार कोना ओतुका मैथिल समाजक अधिकार संविधानमे सुनिश्चित करत ताहि लेल भारतीय मिथिला क्षेत्रमे सेहो लोककेँ संवेदनशील होमय पड़त । ई मात्र क्षेत्रीय नहि राष्ट्रीय (भारतीय) गौरव ओ अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक संदर्भमे सेहो भारतीय दृष्टिकोणसँ महत्तवपूर्ण विषय अछि । भारत सरकारक विदेश मंत्रालय एहि विषयमे एखन धरि विशेष प्रभावशाली नहि साबित भेल अछि । ओकर प्रभाव तखनहि नेपाल सरकारपर पड़तैक जखन भारतीय मिथिला एहि मुद्दापर दलमलित होयत ।
कहय लेल हमरा सभक कयकटा ने "अंतरराष्ट्रीय" संस्था अछि मुदा, से मात्र चन्दाक धन्धा लेल, सेहो साबित भइए गेल । तेँ आब हिनको लोकनिक भरोसे बैसब उचित नहि । ई सभ कृतघ्न ओ कोढ़ि छथि ।

नेपाली साहित्यकार-पत्रकार मित्र लोकनिसँ आग्रह जे वस्तुस्थितिसँ विस्तारमे अवगत करबैत रहथि । ध्यान रहय साहित्यकार अनिवार्यतः पत्रकार होइत अछि तेँ सभ कियो अपन धर्मक निर्वाह करी । विपत्तिक सामना एकजुट भए करी ।
Posted on FB; 21st Sept. 2015.

भाषा-साहित्य

भाषा साहित्यकेँ अभिव्यक्ति दैछ । भाषा समाजकेँ अभिव्यक्ति दैछ । मुदा, ई सबटा अभिव्यक्ति साहित्य नहि थिक । अभिव्यक्तिक स्वतंत्रताक समस्त विस्तार साहित्यमे पूर्णतः समाहित नहि भ' सकैए । साहित्यक अभिव्यक्तिक अपन कोनो निजता नहियो रहैत एकर अपन स्वर आ सामर्थ्य छैक जे एकरा अभिव्यक्तिक कोनो आन माध्यमक तुलनामे अधिक सशक्त बनबैत छैक । साहित्य कोनो नारा नहि थिक । ई तँ समाजक चिन्तन थिक जे दीर्घकाल धरि प्रासंगिक रहैए ।

Posted on FB; 8th June 2015.