आइ जे
अंगिकाक अकादेमी, बज्जिकाक विभाग लेल कपरफोड़ी भ' रहल अछि...किओ जोलहीसँ उर्दूक खोंइछ भरय चाहैत छथि त' किओ पचपनिया'क नामपर मैथिलीक घेंटपर छप्पन छूरी
भंजैत छथि...एहि सभटा फसादक बीजारोपण तहिये भ' गेल छल,
जहिया (1801 इस्वीमे) एच. टी. कोलब्रुक नामक
अंग्रेज 'मिथिला अपभ्रंश' अथवा 'देसिल वयना' अथवा 'तुरुतियाना'क नामकरण एकगोट सवर्ण, हिन्दू राजाक कन्याक नामपर 'मैथिली' राखि देलनि। लगैए जखन ओ एहन साम्प्रदायिक,
सामन्तवादी, जातिवादी, ब्राह्मणवादी...काज
क' रहल छलाह तखन शाइत कोनो सोतिपुराक दरबज्जापर बैसल हेताह!
दुर्भाग्यवश
अर्सकिन पेरी, जॉन बिम्स, ग्रियर्सन सन-सन
विद्वान लोकनि सेहो बिहारी डाइलेक्टक खोज करैत-करैत भोथलाय गेलाह आ अंतत: मैथिलीएक
नाह चढ़ि कछेर धयलनि!
मुदा आब
समय आबि गेल अछि जे बड़का -बड़का महानुभाव लोकनि जाहि काजकेँ सम्पन्न करबासँ चूकि
गेलाह, तकरा हम सभ मिलिजुलि सम्पन्न करी।
आउ, आइ होलीक शुभ अवसरपर लोढ़ी-सिलौटपर हाथ राखि, भांगक
किरिया खाइ जे अपन मातृभाषामे पैसल साम्प्रदायिकता, जातिवाद,
सामन्तवाद, ब्राह्मणवाद...आदिकेँ समूल नष्ट
करब खाहे एहि क्रममे हमरा लोकनिक भाषिक पहिचाने किएक ने लोप भ' जाय, खाहे किएक ने हमरा लोकनिक साहित्यिक-सांस्कृतिक
परिचितिए मटियामेट भ' जाए...!!
तँ आउ, सभ किओ मिलिक' एकटा एहन नव बिहारी भाषाक आविष्कार
करी जकर आदिग्रन्थ 'वर्णरत्नाकर' नहि हो,
जकर शीर्षपुरुष विद्यापति नहि होथि, जकर नाम
मैथिली नहि हो, जकर कोनो इतिहास-भूगोलमे मिथिला नहि हो...आर
जे हेतैक से हेतैक...हमरा लोकनिक टिकासन पर नचैत हिन्दीक आत्माकेँ अवश्य शांति
भेटतैक!!!!
Posted on FB; 23rd March 2016.
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