Tuesday, June 16, 2020

तीन गोट अ-मैथिल पदकर्त्ताक पाँच टा मैथिली पद

ब्रजबुलि साहित्य अन्तर्गत अनेक एहन पद अछि जे विशुद्ध मैथिली भाषाक पद अछि, मुदा एहि पद सभक रचनाकार लोकनि मैथिल नहि छथि। ई पद सभ बंगाली विद्वान लोकनि द्वारा संकलित विभिन्न वैष्णव पदावलीमे छिड़िआयल अछि। कतिपय एहनो पदकर्त्ता छथि जनिकर चर्चा मैथिली साहित्यमे कतहु एखन धरि नहि अभरल अछि। तखन निश्चिते हुनका लोकनिक पद सेहो कतहु संकलित नहि भेल अछि आ ताहिपर कोनो चर्चा सेहो नहिये भेल अछि। हमर प्रयास अछि जे एहन अचर्चित, अल्प-चर्चित पदकर्त्ता ओ पद सभकेँ उपराय अपने सभक सोझाँ राखी ताकि ओहिपर आवश्यक विमर्श भऽ सकय। एहि प्रयासक अन्तर्गत आइ प्रस्तुत अछि तीन गोट अमैथिल पदकर्त्ताक पाँचटा मैथिली पदः- 

1.
चलइ सुधामुखी भेटइत कान।
आरति अतिशय पहुँक धेयान।।
की कहब आजुक रस अभिसार।
मनमथ चीत नीत अनिवार।।
मधुर यामिनि मधु-मास वसन्त।
अविरत पड़े वाण मदन दुरस्त।।
चललि निकुञ्ज कुञ्जर-वर-गमनि।
भेटब नागर मने अनुमानि।।
दुहुँ अवलोकय दुहुँ मुख-चन्द्र।
दुरहि दुरे रहू द्विज राजचन्द्र।।

                                                                                                      -द्विज राजचन्द्र। परिचय अज्ञात। पद-रस-सार, पद-कल्प-लतिका मे पद उपलब्ध। वैष्णव पदावली (सं.- साहित्यरत्न श्रीहरेकृष्ण मुखोपाध्याय), पृ.- 1083 सँ उद्धृत।

2.
अरुण उदय भेल निशि अवसान।
कपोत सारिका शुक सुमधुर गान।।
जय राधे जय राधे जय राधाकान्त।
जागह रसिकवर राधिका प्राणनाथ।।
मागे तोहार दरसन ब्रज लोक।
चाँद मुख दरसने दूरे दुख शोक।।
जागल सखी सब बोल मन्द मन्द।
चरण सेवन करू भागवतानन्द।।

                                                                          -भागवतानन्द। परिचय अज्ञात। ई पद पद-रस-सार ओ पद-कल्प-लतिकामे उपलब्ध अछि। हिनक एक अन्य पद रस-निर्णयमे उपलब्ध अछि। वैष्णव पदावली (सं.- साहित्यरत्न श्रीहरेकृष्ण मुखोपाध्याय), पृ.- 1084 सँ उद्धृत।

3.
देख सखी मोहन मधुर सुवेशं।
चन्द्रक चारू मुकुताफलमण्डित
अलिकुसुमायित केशं।।
तरुण अरुण करुणामय लोचन
मनसिज ताप विनाशं।
अपरुप रूप मनोभव मंगल
मधुर मधुर मृदु हासं।।
अभिनव जलधर कलित कलेवर
दामिनि वसन विकासं।
किये जड़ अजड़ सकल पुलकायित
कुञ्जभवन कृतवासं।।
यो पद पञ्कज नारद भव अज
भाव अभाव परकाशं।
ब्रज वनितागण मोहन कारण
विरचित विविध विलासं।।
पञ्चम राग सुताल तरंगित
अधरे मिलित वर वंशं।
अभिनव पदतल जीतल पंकज
वीरवाहु मनोहंसं।।

                                                                             -वीरवाहु। परिचय अज्ञात। ई पद पद-रस-सार ओ पद-कल्प-लतिकामे उपलब्ध अछि। वैष्णव पदावली (सं.- साहित्यरत्न श्रीहरेकृष्ण मुखोपाध्याय), पृ.- 1084 सँ उद्धृत।

4.
जागिहो किशोरी गोरी रजनी भै भोरे।
रति अलसमे निन्द जाओत रसराजहि कोरे।।
नीलवसन मणि अभरन भै गेयो विथोरे।
सासु ननदि अइसे विवादी मनमे नहि तेरे।।
नगरक लोक जागि बैठब कइसे जायब पुरे।
अरुण उदय होइ आओत सारी शुक  फुकारे।।
सुनि नागर उठि बैठल नागरि करि कोरे।
विश्वंभर झारि पुरि लेइ ठाढ़े रहत द्वारे।।

                                                                                      - विश्वंभर दास| वैष्णव पदावली (सं.- साहित्यरत्न श्रीहरेकृष्ण मुखोपाध्याय), पृ.- 1085  सँ उद्धृत।

5.
श्री शशिशेखर जय जय।
चन्द्रशेखर जय परम करुणामय।।
रसमय संगीत मनोहर सुरचन
अनुपम भाव निधान।
सुकवि सुगायक कोकिल सुस्वर
मधुर विनोद तालमान।।
कतेक जतन मझु शिक्षा समाधिलों
हम अधम बोधहीन।
कह विश्वंभर प्रणति पुरस्सर
चरणे शरणागत दीन।।
                                                                         - विश्वंभर दासक मूल नाम छलनि विश्वंभर ठाकुर। ई बंगालक वीरभूम जिलाक मुलुक गामक मूल निवासी छलाह। ई शशिशेखरक शिष्य छलाह।  उपर देल दुनू पद वीरभूम विवरण, तेसर खण्डमे संकलित अछि। वैष्णव पदावली (सं.- साहित्यरत्न श्रीहरेकृष्ण मुखोपाध्याय), पृ.- 1084 सँ उद्धृत।

Saturday, June 13, 2020

मुसलमान कविक वैष्णव पद

ब्रजबुलि साहित्यक भक्तिमय प्रेम ओ प्रेममय भक्तिक रसधारामे मात्र भाषायी आ क्षेत्रीय सीमा टा नहि भासल, अपितु धार्मिक-साम्प्रदायिक सीमा सेहो भासि गेल आ समस्त पूर्वांचलक सैकड़ो वैष्णव कविगणक सङ्ग सैकड़ो मुसलमान कविगण सेहो कृष्णक अनन्त लीला ओ राधा-कृष्णक अनन्य प्रेमक बखानमे लागि गेलाह। कृष्ण-भक्ति ओ राधा-कृष्णक अनन्य प्रेमक रस-सागरमे चुभकय लगलाह।
यतीन्द्र मोहन भट्टाचार्य द्वारा संकलित-सम्पादित पोथी "बांग्लार वैष्णव भावापन्न मुसलमान कविर पदमञ्जूषा" नामक पोथीमे कुल 162 मुसलमान कविक 943 गोट एहन रचना एकठाम उपलब्ध अछि। पद ओ पदकर्ताक एतेक संख्या निश्चित रूपेण आश्चर्यजनक अछि। जें कि सम्पूर्ण ब्रजबुलि साहित्येक विकास विद्यापतिक पदक प्रेरणा ओ मैथिली भाषाक छत्र-छायामे भेल तेँ आश्चर्य नहि जे एहि पदकर्ता लोकनिक रचना सभमे सेहो मैथिली भाषा ओ विद्यापतिक पदक प्रभाव स्पष्टतः झलकैत अछि।
एतय विशेष उल्लेखनीय अछि जे"बांग्लार वैष्णव भावापन्न मुसलमान कविर पदमञ्जूषा" तथा किछु अन्यान्य वैष्णव पदावलीक अवलोकनक क्रममे एखन धरि हमरा कमसँ तीन गोट मुसलमान पदकर्ता एहनो भेटलाह जनिकर एक-एक टा पद सम्पूर्णतः मैथिली पद थिक आ ताहि हिसाबे मैथिली साहित्य लेल एक महत्वपूर्ण निधि सेहो थिक। ई तीनू पदकर्ता थिकाह- आफजल (अफजल), मनोअर (मुनव्वर?) तथा मर्तुजा गाजी। एहि तीनू कविक परिचय अज्ञात अछि।
आफजलक कुल चारि टा पद विभिन्न संग्रहमे उपलब्ध अछि जाहिमे एक ठाम "सैयद फिरोज" नामक व्यक्तिक उल्लेख भेल अछि। तहिना मनोअर भनिता युक्त एक टा पदमे "आइनुद्दीन"क उल्लेख भेल अछि। यतीन्द्र मोहन भट्टाचार्यक अनुसार ई "आइनुद्दीन' मनोअरक गुरु छलाह। एक टा आर कवि "आशुद्दीन"क गुरु सेहो "आइनुद्दीन" छलाह। एवं प्रकारे प्रतीत होइत अछि जे मनोअर आ आशुद्दीन समकालिक छलाह। मनोअरक कुल सात टा पद उपलब्ध अछि जाहिमे तीन टा पदमे "मनूवर" भनिता अछि। तेसर पदकर्ता मर्तुजा गाजीक दू गोट पद उपलब्ध अछि।
ऊपर हम जाहि तीन टा पदक मैथिली पद होयबाक चर्च कयल अछि से अपने लोकनिक अवलोकनार्थ निम्नलिखित अछि-
1.
आय माधव निवेदहोँ तोहे।
तुमि सदाशय दीन दयामय
तोहे बिन गति नाहि मोहे।
हम आलस गुरू, तुञि कलपतरू
तछु परे साञि सुख वास
आदि अन्त मोहे कर फलोदय
मुझे न कर नैराश।।
हम अपराधी परादि विरोधि
पाप गुण सब हीना।
साञि परिहरि माया मोहे जड़ि
मुञि भुलल रात्र-दिना।।
खाक पाक करि तोहे जीव धरि
तम-रज-सत साञि पूरा।
सोहि दयामय आफजल भावय
मुझे गौरव कर थोड़ा।।
                                                                                                - आफजल
2.
आजु लो पहु देखिय आनन्दचित।
कमल नयन अमल वयन जेहेन चान्दरित।।
ए घोर मन्दिर उज्ज्वल करिल अनन्त आनन्द भेल।
पिया दरशने जत दुख मने धन्द होइ चलि गेल।।
बहुदिन निधि आनि दिल (देल) विधि आनन्दक उपाय।
चित्त पुलकित तनु उल्लासित हेरि पहु गुनधाम।।
साहा आयुद्दीन छौं पहु प्रवीण देखि आनन्द परान।
हीन मनोअर माँगि जोड़ि कर मोके देअ दया दान।।
-          मनोअर
3.
कि आजु कुदिन भेलिय।
छाड़िय गोकुल नन्दलाल मथुरा चलिय गेलिय।
आजु मथुरा उज्ज्वल भेलिय गोकुल मलिन आजु रातिय।
मर्तुजा गाजीय कहय सारय नन्दसुत बाट जाय कानू निश्चय।
-          मर्तुजा गाजी

Monday, June 8, 2020

दू-टप्पी

मैथिली गजलक भूत, भविष्य आ वर्तमान, ओकर तकनीक आ प्रगति विषयक विमर्श एकैसम सदीमे खूब भेल अछि, वा जँ कही जे वर्तमाने सदीमे ई विमर्श भेल अछि तऽ सेहो अतिशयोक्ति नहि होयत। विगत सदीक उत्तरार्द्धमे जे किछु छिट-पुट मैथिली गजल विषयक चर्च भेल से मात्र एक वृहद विमर्शक भूमिका छल, अथवा इहो कहि सकैत छी जे विगत सदीक मैथिली गजलक आलोचक-प्रत्यालोचक लोकनि आजुक विमर्शक सम्भावना तकलनि। विगत सदीसँ आइ धरि एहन जे किछु विमर्श भेल अछि तकर फलाफल थिक जे आइ मैथिली गजलकार लोकनिक मनमे गजलक काफिया सम्बन्धी नियमक अनुपालन ओ अनिवार्यताक प्रति कोनो दुविधा नहि छनि। आब काफिया-हीन रचनाकेँ गजल कहि प्रचारित करबाक प्रचलन नहि अछि। जे लोकनि पहिनहुँ एना कयलनि सेहो प्रत्यक्षतः वा परोक्षतः अपन भूल स्वीकार कयलनि अछि। संगहि एखन धरिक विमर्श एहि मान्यताकेँ सेहो खण्डित कयलक अछि जे मैथिली भाषामे गजल रचना ओ विकासक सम्भावना नहि छैक। कमसँ कम विगत दू-दशकमे मैथिली गजल प्रचुर विकास कयलक अछि।
आब मैथिली गजलकार तथा समालोचक लोकनिक बीच जाहि विषयपर मतान्तर छनि वा कही आइ गजल सम्बन्धी जे विषय चर्चाक केन्द्रमे अछि से थिक जे गजलक हेतु बहर-विधानक अनुपालन अनिवार्य अछि वा नहि? मुदा जाहि प्रकारें गजलकार लोकनि बहर-बद्ध गजलक रचना कऽ रहल छथि, ततबे नहि बहर सम्बन्धी नियम-कायदाक अध्ययन-अनुसंधान कऽ रहल छथि, ताहि आधारपर कहि सकैत छी जे निकट भविष्यमे इहो विमर्श समाप्त होयत आ सब गजलकार बहरक प्रयोग करय लगताह।
हमर व्यक्तिगत एखन धरिक गजल सम्बन्धी नियम-कायदाक जे अध्ययन आ अनुभव अछि ताहि आधारपर हमरा जनैत तकनीकि दृष्टिकोणसँ गजलक मात्र दू-टा अनिवार्य तत्व छैक, जकर अनुपालनक प्रति यदि किओ गजलकार साकांक्ष रहथि तऽ गजल रचनाक हुनकर दक्षता कालान्तरमे असीम विस्तार पाओत आ ओ अपन भाषा-साहित्यकेँ सब तरहें श्रेष्ठ गजलसँ समृद्ध कऽ सकैत छथि। ई दू-गोट बिन्दु निम्नलिखित अछिः-
1. गजल रचनाक लेल जे पहिल अनिवार्य तकनीकि तत्व अछि से थिक काफियाक नियमक अनुपालन। संगहि यदि रदीफक प्रयोग गजलकार करैत छथि तँ ओहिसँ हुनकर रचनाक लालित्य ओ प्रभाव आर बढ़ि जाइत अछि। अतः काफिया आ रदीफक प्रयोगक प्रति साकांक्ष रहथि।
2. हमरा नजरिमे गजलक दोसर जे आवश्यक तकनीकी तत्व अछि से थिक बहर अथवा छन्द-विधान। गजलक परिप्रेक्ष्यमे बहर-विधानकेँ सरलतम रूपमे एहि तरहें बूझल जा सकैत अछि जे मतलाक शेरक पहिल मिसरामे जतेक मात्रा-संख्या अछि, दोसरो मिसरामे सेहो ओतबे मात्रा-संख्या हो तथा बादक शेरक प्रत्येक मिसरामे सेहो। आब एतय यदि मात्राक्रम सेहो प्रत्येक मिसरामे समान रहत तऽ रचना आरो श्रेष्ठ कहाओत। जखन मात्राक्रम समान रहत तऽ मात्रा-समूह अथवा रुक्न अथवा गण सेहो निर्धारित होयत आ परिणामस्वरूप यति अपने आप गजलक मिसरामे स्पष्ट भऽ कऽ सोझाँ आबि जायत। मैथिली भाषाक प्रकृति ओ उच्चारण-पद्धतिक अनुसारे विभक्ति-चिन्ह सेहो ओही मात्रा-समूह अथवा रुक्नक अन्तर्गत आबय जाहि समूहमे ओकर मूल शब्द छैक।
हमरा लगैत अछि जे उपरोक्त दुनू बिन्दुपर विचार कयलाक पछाति हुनका लोकनिक धारणा सेहो गजलक बहर-सम्बन्धी नियमक प्रति बदलतनि जे एखनधरि यैह बुझैत छथि जे गजल लिखबाक लेल अरबी बहरक स्थापित नियम सभक अनुपालन करब अनिवार्य छैक।

Thursday, June 4, 2020

दू-टप्पी

पत्रकारक प्रधान धर्म होइत छैक, सत्तासँ प्रश्न करब। ओकर शासन व्यवस्थामे कतय कोन कमी छैक तकरा रेखांकित करब। सरकारक दुर्नीतिक विरुद्ध जनताकेँ चेतायब। मुदा आई पत्रकार सत्ताक बदला जनता आ विपक्षसँ प्रश्न करैत अछि। वा कहि सकैत छी जे ओ पत्रकारिता धर्म बिसरि गेल अछि। ओकरा लग आब प्रश्न करबाक लूरि नहि बाँचल छैक।
आजुक समयमे जे अपनाकेँ पत्रकार कहैत छथि, से मात्र अपन व्यक्तिगत ओ संस्थागत लाभ-हानिक चिंता करैत छथि। हुनका सत्ताक नजदीकी आ चापलूस बनबामे अधिक लाभ देखाइत छनि। आ लाभक आगाँ धर्मक कोन मोल?
आजुक समयमे पत्रकारिता केवल आ केवल मात्र एक व्यवसाय थिक। पत्रकार मात्र प्रचारक छथि। जी, विज्ञापनक एकटा मॉडल मात्र। हुनकर काज छनि, ओहि मुद्दा, ओ विषय, ओहि विचारधाराकेँ उठायब, जाहिसँ ओ सत्ताधीशक कृपापात्र बनल रहताह।
पूर्वमे सेहो एहन पत्रकार होइत छलाह। मुदा तहिया ई कुकर्म झाँपल-तोपल रहैत छल। एहन पत्रकारक संख्या कम छल तहिया। आब सबकिछु उघार अछि। निर्लज्जताक पराकाष्ठा।
लोकतंत्रमे जखन मिडियाकेँ चारिम स्तम्भ कहल गेल हेतैक तँ सबहक यैह परिकल्पना होयतनि जे पत्रकार जनता आ जन-सरोकारक पक्षकार बनताह। मुदा आई एहन भावना कोनो पत्रकारमे विरले भेटत। आई पत्रकारक उद्देश्य छनि जे सत्ताधारी नेताक सङ्ग हुनकर नजदीकी बढनि। ओहि नजदीकीक प्रयोगसँ अपन समाजमे रुतबा बढनि। आ ओहि रुतबाक बलपर ओ किछु अलभ्य प्राप्त करथि।
ई एहन समय अछि जखन जनताकेँ पत्रकारपर ओकर पत्रकारिता पर आँखि मुनि क' विश्वास नहि करबाक चाही। पत्रकार आब विश्वासपात्र नहि विश्वासघाती जीव अछि।
पत्रकारिताक एहि क्षरणक एकटा पैघ कारण छैक जे आब पत्रकार अधिकांशतः ओहन व्यक्ति सब बनैत छथि जे जीवनक अन्यान्य क्षेत्रमे असफल छथि। गामघरमे अपन आसपास एहन दर्जनों युवक लोकनि भेटि जयताह जे अच्छरकट्टु छथि मुदा हुनकर बाइकपर 'प्रेस' लिखल भेटत। जनिका सामान्य नीक-बेजायक ज्ञान छनि, जनिका अपन सामाजिक-पारिवारिक ओ राष्ट्रीय दायित्वक बोध नहि छनि, से पत्रकारिताक दायित्व सम्हारि सकताह, ई सम्भव अछि?
कतेक दुर्भाग्यपूर्ण अछि जे पत्रकारिता जे एक समयक विचारक-विद्वानक, सिद्धांतवादी समाजसेवी लोकनिक कर्त्तव्य-क्षेत्र छल, आब मूर्ख-अपाटक आ असामाजिक लोकक वृत्ति बनि गेल अछि।

Posted on FB 23.04.2020

दू-टप्पी

सामान्य जनसँ राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तरक चिन्तक लोकनि धरि एखन जाहि चिन्तनमे, जाहि खोजमे, जाहि प्रयासमे लीन छथि तकर केन्द्रमे दूइए प्रमुख विषय अछि- कोरोना महामारीसँ जीवनकेँ बचायब आ महामारीक पश्चातक जन-जीवनक संचालन। जीवनपर कोनो आपदाक कतबा असरि पड़ल तकर सटीक मूल्यांकन आपदाक घड़ी बितलाक बादहि होइत छैक। एहि प्रसंग मिथिलामे बड़ प्रचलित कहबी अछि जे बाढ़िक असरि पानि घटलाक बाद बुझबामे अबैत छैक।
महामारीसँ जीवनकेँ बचयबाक एखनधरिक जे सभसँ सटीक उपाय हमरा लोकनिक सोझाँ अछि से थिक संक्रमणसँ बचाव, आ देश-समाजमे संक्रमणक विस्तार रोकबाक लेल सरकार लग जे सभसँ कारगर तकनीकि छैक से थिक- लॉकडाउन। परिणामस्वरूप आइ लगभग पन्द्रह दिनसँ समूचा देश सरकारी आदेशानुसार तालाबंद अछि। एहिना विश्वक अनेक देशमे तालाबंदी छैक। लोक अपन-अपन घरमे बंद छथि। कारोबार ठप्प अछि। ठप्प अर्थव्यवस्थासँ आगामी समयमे जन-जीवनक त्रस्त होयब सेहो निश्चित अछि। तथापि एखन प्राथमिकता अछि जीवन बचायब।
सरकार लग संक्रमण रोकथामक हेतु जे दोसर विकल्प छैक से थिक अधिकसँ अधिक संभावित मरीजक, कमसँ कम समयमे जाँच आ संक्रमित मरीजक इलाज करब। जतेक कम समयमे जतेक अधिक जाँच होयत, बिमारीक पसार पर ओतेक नियंत्रण होयत। किन्तु सरकारो लग उपलब्ध साधनक एकटा सीमा होइत छैक। भारतमे एखन प्रतिदिन लगभग दस हजार लोकक जाँच भए रहल अछि तथा आशा कयल जा रहल अछि जे आगामी किछु दिनमे ई संख्या बढ़ि कए बीस हजार व्यक्ति प्रतिदिन तक पहुँचत। यद्यपि भारत सन विशाल देशक हिसाबे इहो अपर्याप्त सिद्ध भए सकैत अछि यदि भारतवासी स्वयं संक्रमणसँ बचबाक

दू-टप्पी

सब किओ सुनैत-बजैत छी जे- साहित्य समाजक दर्पण थिक। अर्थात् साहित्य समाजक नीक-बेजायक निष्पक्ष चित्र जन-सामान्यक बीच उपस्थित करैत अछि। यैह साहित्य जखन इतिहासक पन्नापर छपैत अछि तँ ओहिमे हम मानव सभ्यताक विकासक चित्र देखैत छी। साहित्य वर्तमानक विश्लेषण थिक, भूतकालक व्याख्याता थिक आ भविष्यक स्वप्नद्रष्टा थिक। धरि साहित्य अपन समस्त भूमिकाक सफलतापूर्वक निर्वहन करय, तकर दायित्व साहित्यकारक होइत छनि। एवं प्रकार साहित्यकारकेँ निष्पक्षतासँ अपन दायित्व निर्वहन करबाक चाहियनि, यैह हुनक धर्म थिक। आखिर कर्तव्यसँ बढ़ि आन कोन धर्म होइत छैक?
आब प्रश्न उठैत अछि जे ई निष्पक्षता की थिक। वस्तुतः निष्पक्षता न्यायक पक्षधरता थिक, उचितक समर्थन थिक, अनुचितक आलोचना थिक। निष्पक्षता पक्ष-विपक्षसँ फराक कोनो तेसर विन्दू नहि होइत अछि। निष्पक्षताक आदर्श रूपमे हमरा लोकनि सदिखन दूटा प्रतीकक उपयोग करैत छी-  हंस ओ न्यायधीश। एही दू प्रतीकक जँ निष्पक्ष कहल जाइबला क्रियापर ध्यान देब तँ हमर उपरोक्ष कथन स्पष्ट भए जायत। हंसकेँ हमरा लोकनि नीर-क्षीर विवेकी कहैत छी। मुदा हंस क्षीर-लोभी अछि। ओ दूध आ पानिकेँ अलग नहि करैत अछि, दूध ग्रहण करैत अछि आ पानि छोड़ि दैत अछि। तहिना न्याधीशक समक्ष जखन कोनो मामला अबैत छनि तँ ओ दुनू पक्ष- पक्ष आ विपक्षक जिरह सुनैत छथि, सबूत गुनैत छथि आ तकर बाद न्यायक पक्षमे, सत्यक पक्षमे ठाढ़ होइत छथि। तेँ कोनो विषम परिस्थितिमे साहित्यकारकेँ नीर-क्षीर विवेकी हंस जकाँ किंवा न्यायप्रिय न्यायधीश जकाँ सत्य ओ न्यायक पक्षमे ठाढ़ होयबाक चाहियनि। अपक्ष रहब निष्पक्षता नहि, कायरता थिक।
प्रतीक जीवनकेँ गति प्रदान करबामे अधिककाल सहायक सिद्ध होइत अछि। जीवन-यात्रामे लक्ष्य-प्राप्तिक माध्यमक

दू-टप्पी

संपूर्ण विश्व एखन एक महामारीसँ लड़ि रहल अछि। ई संकट कोनो एक देशपर नहि समूचा मानवता पर मड़रा रहल अछि। मुदा, मानवता अंततः ई युद्ध जीतत, एहिमे कोनो दू-मत नहि। कारण आजुक मानव एहन युद्ध जीतबामे सक्षम अछि। अतः प्रश्न एखन जतेक पैघ छैक जे ई महामारी रूपी काल कोना कटत, ताहिसँ पैघ प्रश्न छैक जे ई महामारीसँ हमरा लोकनि जखन अगिला किछु दिनमे उबरब तखन आगाँक बाधा-विघ्नक पार कोना पायब? आइ संसारक विचारक एहिपर मंथन कए रहल छथि। मुदा, हमरा लोकनि, भारतक जनता ओ व्यवस्था, निचैन छी जे - जे जखन हेतैक से तखन देखल जेतैक! ई सोच हमरा लोकनिक लेल कतेक सहायक, कतेक विपत्तिकारी होयत से भविष्यक गर्भमे अछि।
महामारी पसरबासँ पूर्वहुँ प्रायः हमरा लोकनि, हमर शासन-व्यवस्था, यैह मनःस्थितिमे रही आ आइ तकर परिणाम भोगि रहल छी। संपूर्ण देशमे तालाबंदी लागू अछि। जँ ससमय सचेत रहितहुँ तँ आइ स्थिति दोसरो भए सकैत छल। तालाबंदीक टटका असरि बड़ सकारात्मक छैक- महामारी पर हमरा लोकनि नियंत्रण पायब। वर्तमान परिस्थितिमे यैह सभसँ प्रभावकारी दबाइ थिक। मुदा, एकर दुष्परिणाम कदाचित ताहूसँ बढ़ि कऽ हमरा लोकनिक सोझाँ आओत। आइ विशेषज्ञ लोकनि अंदाज लगा रहल छथि जे मंदीक चपेटमे आबि कऽ भारतक कमसँ कम चारि आना उद्योग बंद भए जयतैक, आ बेरोजगारीक विकराल समस्या एतुका समाजमे पसरत। मुदा ई जे आगत समस्या अछि ताहिसँ लड़बाक लेल हमरा लोकनि कतेक तैयार छी, केहन

सामाजिकता

व्यक्तिकेँ आब समाजक डर नहि छैक। समाजक अन्तर्नियमनक प्रायः सबटा सूत्र मसकि गेल अछि। फलतः समाजिकता खत्तामे पड़ल अछि। आ जखन सामाजिकता नहि, तखन समाज कतय बाँचत, आ समाजवाद कतय भेटत? एहनामे व्यक्तिक असामाजिक होयब स्वाभाविके अछि।
तेँ, जँ असामाजिक तत्वसँ बाँचय चाहैत छी, समाजमे रहय चाहैत छी, समाजवादकेँ स्थापित देखय चाहैत छी, तँ सभसँ पहिने सामाजिकता बचबय पड़त। कोनो अनीतिक विरुद्ध समाजसँ लड़ब उचित कर्तव्य थिक मुदा समयपर समाज लेल लड़ब महान कार्य थिक।
व्यक्ति कि संस्थाक मोनमे कोनो निर्णय लैत काल जा धरि -समाज की कहत, समाज की सोचत, समाजपर एहि निर्णयक केहन आ कतेक प्रभाव पड़तैक?- आदि प्रश्न नहि जनमत आ तकर सटीक उत्तर तकबाक लिप्सा नहि जागत, ताधरि समाज, सामाजिकता आ समाजवादक सभटा सूत्र निरर्थके रहत!

Posted on FB 13.07.2019


ई पोथी बहुत दिन धरि अलमारीमे पड़ल छल। मुदा आब जखन पहिल बेर एकरा पढ़लहुँ तँ बड़ कष्ट भेल जे एतेक दिन धरि एहि पोथीक पढ़बाक सुखसँ वंचित रहलहुँ।
"कोशी प्राङ्गणक चिट्ठी" वस्तुतः एकटा अप्रतिम गद्य (हमरा तँ कोनो अद्भुत कविता जकाँ लागल) थिक, जकरा पढ़बाक, बेर-बेर पढ़बाक आ पढ़िते रहबाक इच्छा होइत अछि।
कोशीक दिव्यता, कोशीक भयंकरता, कोशीक उदारता, कोशीक कृपणता, कोशीक विराटता, कोशीक संकीर्णता, कोशीक रचना, कोशीक संहार, कोशीक स्वाभिमान, कोशीक समर्पण आदि कोशीक प्रायः समस्त चरित्रगाथा, एकर जीवनक समस्त लय, ताल, छन्द एहि पोथीक पन्नापर कुशलतापूर्वक अंकित अछि जे कौखन पाठककेँ सम्मोहित करैत करैत अछि, कौखन आतंकित करैत अछि तँ कौखन द्रवित करैत अछि।
जँ हमरा कहल पर विश्वास नहि होइत अछि तँ एकबेर अपने पढ़ि क' देखियौ!😊

Posted on FB 01.09.2018


देशक तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक आओर धार्मिक स्थिति अत्यंत अराजक छल । देशमे कोनो केन्द्रिय सत्ताक अभाव छल । धार्मिक कट्टरताक ओ जाति विभेद अपन चरमोत्कर्ष प्राप्त कयने छल । भारतक आर्थिक समृद्धिसँ आकर्षित विदेशी आक्रमणकारी स्थानीय जन-जीवनकेँ आक्रान्त कऽ चुकल छल । कुल मिलाकऽ राजनैतिक आओर सांस्कृतिक दृष्टिसँ ई संघर्षकाल छल । अतः तन्त्रवादक नामपर नारी-भोग, सुरापान, धार्मिक क्षेत्रमे आयल नैतिक स्खलन आदिकेँ दूर करबाक तथा लोककेँ पुनः भगवद्-विषयक रति दिस उन्मुख करबाक आवश्यकता विद्वत समाज मध्य अनुभव कयल जा रहल छल । एहन समयमे जयदेव भगवद्-भक्तिक अभिनव विचार ओ शैलीक प्रवर्त्तन कयलनि जाहिसँ जनताकेँ रतिभावक नव आवलम्बन प्राप्त भेल । अपन रचनाक उद्देश्य ओ महत्वकेँ रेखांकित करैत जयदेव लिखलनि-

यदि हरिस्मरणे सरसं मनो यदि विलासकलासु कुतूहलम् ।
मधुरकोमलकान्तपदावली शृणु तदा जयदेवसरस्वतीम् ।।

यदि हरि-स्मरणमे मन अछि तथा यदि विलास-कथाक प्रति कौतूहल अछि तँ जयदेवक कोमलकान्त पदावली सुनू । स्पष्ट अछि जे गीतगोविन्दक भक्ति आओर शृंगारक गठजोड़ बेस सुविचारित छल ।

Posted on FB 13.06.2017