Monday, June 8, 2020

दू-टप्पी

मैथिली गजलक भूत, भविष्य आ वर्तमान, ओकर तकनीक आ प्रगति विषयक विमर्श एकैसम सदीमे खूब भेल अछि, वा जँ कही जे वर्तमाने सदीमे ई विमर्श भेल अछि तऽ सेहो अतिशयोक्ति नहि होयत। विगत सदीक उत्तरार्द्धमे जे किछु छिट-पुट मैथिली गजल विषयक चर्च भेल से मात्र एक वृहद विमर्शक भूमिका छल, अथवा इहो कहि सकैत छी जे विगत सदीक मैथिली गजलक आलोचक-प्रत्यालोचक लोकनि आजुक विमर्शक सम्भावना तकलनि। विगत सदीसँ आइ धरि एहन जे किछु विमर्श भेल अछि तकर फलाफल थिक जे आइ मैथिली गजलकार लोकनिक मनमे गजलक काफिया सम्बन्धी नियमक अनुपालन ओ अनिवार्यताक प्रति कोनो दुविधा नहि छनि। आब काफिया-हीन रचनाकेँ गजल कहि प्रचारित करबाक प्रचलन नहि अछि। जे लोकनि पहिनहुँ एना कयलनि सेहो प्रत्यक्षतः वा परोक्षतः अपन भूल स्वीकार कयलनि अछि। संगहि एखन धरिक विमर्श एहि मान्यताकेँ सेहो खण्डित कयलक अछि जे मैथिली भाषामे गजल रचना ओ विकासक सम्भावना नहि छैक। कमसँ कम विगत दू-दशकमे मैथिली गजल प्रचुर विकास कयलक अछि।
आब मैथिली गजलकार तथा समालोचक लोकनिक बीच जाहि विषयपर मतान्तर छनि वा कही आइ गजल सम्बन्धी जे विषय चर्चाक केन्द्रमे अछि से थिक जे गजलक हेतु बहर-विधानक अनुपालन अनिवार्य अछि वा नहि? मुदा जाहि प्रकारें गजलकार लोकनि बहर-बद्ध गजलक रचना कऽ रहल छथि, ततबे नहि बहर सम्बन्धी नियम-कायदाक अध्ययन-अनुसंधान कऽ रहल छथि, ताहि आधारपर कहि सकैत छी जे निकट भविष्यमे इहो विमर्श समाप्त होयत आ सब गजलकार बहरक प्रयोग करय लगताह।
हमर व्यक्तिगत एखन धरिक गजल सम्बन्धी नियम-कायदाक जे अध्ययन आ अनुभव अछि ताहि आधारपर हमरा जनैत तकनीकि दृष्टिकोणसँ गजलक मात्र दू-टा अनिवार्य तत्व छैक, जकर अनुपालनक प्रति यदि किओ गजलकार साकांक्ष रहथि तऽ गजल रचनाक हुनकर दक्षता कालान्तरमे असीम विस्तार पाओत आ ओ अपन भाषा-साहित्यकेँ सब तरहें श्रेष्ठ गजलसँ समृद्ध कऽ सकैत छथि। ई दू-गोट बिन्दु निम्नलिखित अछिः-
1. गजल रचनाक लेल जे पहिल अनिवार्य तकनीकि तत्व अछि से थिक काफियाक नियमक अनुपालन। संगहि यदि रदीफक प्रयोग गजलकार करैत छथि तँ ओहिसँ हुनकर रचनाक लालित्य ओ प्रभाव आर बढ़ि जाइत अछि। अतः काफिया आ रदीफक प्रयोगक प्रति साकांक्ष रहथि।
2. हमरा नजरिमे गजलक दोसर जे आवश्यक तकनीकी तत्व अछि से थिक बहर अथवा छन्द-विधान। गजलक परिप्रेक्ष्यमे बहर-विधानकेँ सरलतम रूपमे एहि तरहें बूझल जा सकैत अछि जे मतलाक शेरक पहिल मिसरामे जतेक मात्रा-संख्या अछि, दोसरो मिसरामे सेहो ओतबे मात्रा-संख्या हो तथा बादक शेरक प्रत्येक मिसरामे सेहो। आब एतय यदि मात्राक्रम सेहो प्रत्येक मिसरामे समान रहत तऽ रचना आरो श्रेष्ठ कहाओत। जखन मात्राक्रम समान रहत तऽ मात्रा-समूह अथवा रुक्न अथवा गण सेहो निर्धारित होयत आ परिणामस्वरूप यति अपने आप गजलक मिसरामे स्पष्ट भऽ कऽ सोझाँ आबि जायत। मैथिली भाषाक प्रकृति ओ उच्चारण-पद्धतिक अनुसारे विभक्ति-चिन्ह सेहो ओही मात्रा-समूह अथवा रुक्नक अन्तर्गत आबय जाहि समूहमे ओकर मूल शब्द छैक।
हमरा लगैत अछि जे उपरोक्त दुनू बिन्दुपर विचार कयलाक पछाति हुनका लोकनिक धारणा सेहो गजलक बहर-सम्बन्धी नियमक प्रति बदलतनि जे एखनधरि यैह बुझैत छथि जे गजल लिखबाक लेल अरबी बहरक स्थापित नियम सभक अनुपालन करब अनिवार्य छैक।

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