Tuesday, June 16, 2020

तीन गोट अ-मैथिल पदकर्त्ताक पाँच टा मैथिली पद

ब्रजबुलि साहित्य अन्तर्गत अनेक एहन पद अछि जे विशुद्ध मैथिली भाषाक पद अछि, मुदा एहि पद सभक रचनाकार लोकनि मैथिल नहि छथि। ई पद सभ बंगाली विद्वान लोकनि द्वारा संकलित विभिन्न वैष्णव पदावलीमे छिड़िआयल अछि। कतिपय एहनो पदकर्त्ता छथि जनिकर चर्चा मैथिली साहित्यमे कतहु एखन धरि नहि अभरल अछि। तखन निश्चिते हुनका लोकनिक पद सेहो कतहु संकलित नहि भेल अछि आ ताहिपर कोनो चर्चा सेहो नहिये भेल अछि। हमर प्रयास अछि जे एहन अचर्चित, अल्प-चर्चित पदकर्त्ता ओ पद सभकेँ उपराय अपने सभक सोझाँ राखी ताकि ओहिपर आवश्यक विमर्श भऽ सकय। एहि प्रयासक अन्तर्गत आइ प्रस्तुत अछि तीन गोट अमैथिल पदकर्त्ताक पाँचटा मैथिली पदः- 

1.
चलइ सुधामुखी भेटइत कान।
आरति अतिशय पहुँक धेयान।।
की कहब आजुक रस अभिसार।
मनमथ चीत नीत अनिवार।।
मधुर यामिनि मधु-मास वसन्त।
अविरत पड़े वाण मदन दुरस्त।।
चललि निकुञ्ज कुञ्जर-वर-गमनि।
भेटब नागर मने अनुमानि।।
दुहुँ अवलोकय दुहुँ मुख-चन्द्र।
दुरहि दुरे रहू द्विज राजचन्द्र।।

                                                                                                      -द्विज राजचन्द्र। परिचय अज्ञात। पद-रस-सार, पद-कल्प-लतिका मे पद उपलब्ध। वैष्णव पदावली (सं.- साहित्यरत्न श्रीहरेकृष्ण मुखोपाध्याय), पृ.- 1083 सँ उद्धृत।

2.
अरुण उदय भेल निशि अवसान।
कपोत सारिका शुक सुमधुर गान।।
जय राधे जय राधे जय राधाकान्त।
जागह रसिकवर राधिका प्राणनाथ।।
मागे तोहार दरसन ब्रज लोक।
चाँद मुख दरसने दूरे दुख शोक।।
जागल सखी सब बोल मन्द मन्द।
चरण सेवन करू भागवतानन्द।।

                                                                          -भागवतानन्द। परिचय अज्ञात। ई पद पद-रस-सार ओ पद-कल्प-लतिकामे उपलब्ध अछि। हिनक एक अन्य पद रस-निर्णयमे उपलब्ध अछि। वैष्णव पदावली (सं.- साहित्यरत्न श्रीहरेकृष्ण मुखोपाध्याय), पृ.- 1084 सँ उद्धृत।

3.
देख सखी मोहन मधुर सुवेशं।
चन्द्रक चारू मुकुताफलमण्डित
अलिकुसुमायित केशं।।
तरुण अरुण करुणामय लोचन
मनसिज ताप विनाशं।
अपरुप रूप मनोभव मंगल
मधुर मधुर मृदु हासं।।
अभिनव जलधर कलित कलेवर
दामिनि वसन विकासं।
किये जड़ अजड़ सकल पुलकायित
कुञ्जभवन कृतवासं।।
यो पद पञ्कज नारद भव अज
भाव अभाव परकाशं।
ब्रज वनितागण मोहन कारण
विरचित विविध विलासं।।
पञ्चम राग सुताल तरंगित
अधरे मिलित वर वंशं।
अभिनव पदतल जीतल पंकज
वीरवाहु मनोहंसं।।

                                                                             -वीरवाहु। परिचय अज्ञात। ई पद पद-रस-सार ओ पद-कल्प-लतिकामे उपलब्ध अछि। वैष्णव पदावली (सं.- साहित्यरत्न श्रीहरेकृष्ण मुखोपाध्याय), पृ.- 1084 सँ उद्धृत।

4.
जागिहो किशोरी गोरी रजनी भै भोरे।
रति अलसमे निन्द जाओत रसराजहि कोरे।।
नीलवसन मणि अभरन भै गेयो विथोरे।
सासु ननदि अइसे विवादी मनमे नहि तेरे।।
नगरक लोक जागि बैठब कइसे जायब पुरे।
अरुण उदय होइ आओत सारी शुक  फुकारे।।
सुनि नागर उठि बैठल नागरि करि कोरे।
विश्वंभर झारि पुरि लेइ ठाढ़े रहत द्वारे।।

                                                                                      - विश्वंभर दास| वैष्णव पदावली (सं.- साहित्यरत्न श्रीहरेकृष्ण मुखोपाध्याय), पृ.- 1085  सँ उद्धृत।

5.
श्री शशिशेखर जय जय।
चन्द्रशेखर जय परम करुणामय।।
रसमय संगीत मनोहर सुरचन
अनुपम भाव निधान।
सुकवि सुगायक कोकिल सुस्वर
मधुर विनोद तालमान।।
कतेक जतन मझु शिक्षा समाधिलों
हम अधम बोधहीन।
कह विश्वंभर प्रणति पुरस्सर
चरणे शरणागत दीन।।
                                                                         - विश्वंभर दासक मूल नाम छलनि विश्वंभर ठाकुर। ई बंगालक वीरभूम जिलाक मुलुक गामक मूल निवासी छलाह। ई शशिशेखरक शिष्य छलाह।  उपर देल दुनू पद वीरभूम विवरण, तेसर खण्डमे संकलित अछि। वैष्णव पदावली (सं.- साहित्यरत्न श्रीहरेकृष्ण मुखोपाध्याय), पृ.- 1084 सँ उद्धृत।

No comments:

Post a Comment