Thursday, June 4, 2020

सामाजिकता

व्यक्तिकेँ आब समाजक डर नहि छैक। समाजक अन्तर्नियमनक प्रायः सबटा सूत्र मसकि गेल अछि। फलतः समाजिकता खत्तामे पड़ल अछि। आ जखन सामाजिकता नहि, तखन समाज कतय बाँचत, आ समाजवाद कतय भेटत? एहनामे व्यक्तिक असामाजिक होयब स्वाभाविके अछि।
तेँ, जँ असामाजिक तत्वसँ बाँचय चाहैत छी, समाजमे रहय चाहैत छी, समाजवादकेँ स्थापित देखय चाहैत छी, तँ सभसँ पहिने सामाजिकता बचबय पड़त। कोनो अनीतिक विरुद्ध समाजसँ लड़ब उचित कर्तव्य थिक मुदा समयपर समाज लेल लड़ब महान कार्य थिक।
व्यक्ति कि संस्थाक मोनमे कोनो निर्णय लैत काल जा धरि -समाज की कहत, समाज की सोचत, समाजपर एहि निर्णयक केहन आ कतेक प्रभाव पड़तैक?- आदि प्रश्न नहि जनमत आ तकर सटीक उत्तर तकबाक लिप्सा नहि जागत, ताधरि समाज, सामाजिकता आ समाजवादक सभटा सूत्र निरर्थके रहत!

Posted on FB 13.07.2019

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