भाषा
साहित्यकेँ अभिव्यक्ति दैछ । भाषा समाजकेँ अभिव्यक्ति दैछ । मुदा, ई सबटा अभिव्यक्ति साहित्य नहि थिक ।
अभिव्यक्तिक स्वतंत्रताक समस्त विस्तार साहित्यमे पूर्णतः समाहित नहि भ' सकैए । साहित्यक अभिव्यक्तिक अपन कोनो निजता नहियो रहैत एकर अपन स्वर आ
सामर्थ्य छैक जे एकरा अभिव्यक्तिक कोनो आन माध्यमक तुलनामे अधिक सशक्त बनबैत छैक ।
साहित्य कोनो नारा नहि थिक । ई तँ समाजक चिन्तन थिक जे दीर्घकाल धरि प्रासंगिक
रहैए ।
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