जनकंठमे बसल मैथिली लोकगीतसँ फराक विद्यापतिकालसँ
मैथिलीमे लोकभाषा ओ लोकशैलीमे , साहित्यिक गीत लिखबाक जे नवीन गीति-परंपरा आरंभ भेल से उनैसम शताब्दीक अंतधरि
कायम रहल । पछाति इहो गीति सभमे अधिकांश, अत्यधिक लोकप्रियताक कारणेँ लोकगीतेक नामसँ प्रचलित भेल
अछि । बादमे आधुनिक मैथिली साहित्यक प्रणेता कवीश्वर चन्दा झा ताहि समयमे गीतिक प्रचलित
शैली ओ स्वरकेँ नवस्वरूपमे प्रयोग कएलनि आ एतहिसँ आधुनिक मैथिली गीतिकाव्य परंपराक
उद्भव भेल ।
डॉ.रमानन्द झा "रमण" लिखैत
छथि जे आचार्य रमानाथ झा मैथिली गीत परंपराकेँ दू वर्गमे बँटने छथि- प्राचीन गीत आ
नवीन गीत । आब एहि 'नवीन गीत'क परिकल्पनाक पाछाँ आचार्य रमानाथ झा जी कोन आधार प्रस्तुत
कएने छथि से हमरा ज्ञात नहि अछि मुदा, प्रतीत होइत अछि जे चन्दा झा ओ परवर्ती गीतकार लोकनि द्वारा जे गीति-परंपरा अपनाओल
गेल अछि आ बीसम शताब्दीमे मैथिली गीतिक जे विभिन्न स्वरूपक प्रचलन भेल अछि से सभ एहिमे
शामिल भेल होयत ।
डॉ. शंभुनाथ सिंह १९३५सँ १९५० धरि, हिन्दी साहित्यमे नवगीतक अंकुरण काल मानलनि अछि मुदा, एतय स्पष्ट अछि जे आधुनिक मैथिली गीतिक प्रस्फुटन उनैसम-बीसम
शताब्दीक संगमेपर भेल । अतः मैथिलीक आधुनिक गीतक परिकल्पना नितान्त मौलिक अछि । लेकिन हिन्दी
नवगीतक नामकरण १९५९मे "गीतांगिनी"क बाद भेल आ संभवतः एकरे प्रभावसँ मैथिलीयोमे
ई शब्द प्रचलित भेल होयत ।
जखन आधुनिक मैथिली गीतक विस्तृत परिधिकेँ देखैत छी तँ
"नवगीत" एकर एकगोट अंगमात्र प्रतीत होइत अछि अर्थात् जहिन आधुनिक मैथिली
कवितामे पछिला सय बरखमे अनेक धाराक जन्म भेल अछि आ सभटा समग्रतामे मात्र मैथिली कविता
थिक तहिना नवगीत सेहो आधुनिक मैथिली गीतिकाव्यक एकटा नव संबोधन मात्र थिक ।
नवगीत कि आधुनिक गीतिकाव्यक विवेचना करैत
काल ओकर रचनाकाल, छन्दविधान एवं काव्य-तत्वपर समग्र दृष्टि
राखब अनिवार्य अछि । निश्चित रूपेँ आधुनिको कालमे मैथिलीमे एहन गीत लिखल गेल होयत जे
प्राचीन लोकगीत-गीतिकाव्यसँ प्रेरित अछि आ आधुनिक शैलीक अछैतो ओकर काव्यतत्व प्राचीन होयत ।
तहिना पारंपरिक छन्दशास्त्रक उपयोग करैत समकालीन विषय-वस्तुपर उत्कृष्ट गीतक रचना सेहो
भेल होयत वा भऽ सकैत अछि । आधुनिक गीत कि नवगीतमे काव्य-तत्वक अभिनवता ओ गेयता ओकर
प्राण तत्व छैक, तेँ मात्र रचनाकालक आधारपर कि छन्दशास्त्रक अनुपालनक आधारपर कोनो गीतकेँ
आधुनिक कि प्राचीन कहब उचित नहि । आधुनिक मैथिली गीत कि नवगीतक सम्बन्धमे जे भ्रम पसरल
अछि तकर निवारण हेतु आवश्यक अछि जे एकर काव्यशास्त्रीय विवेचन कएल जयवाक आवश्यकता अछि
।
Posted on FB; 7th Oct. 2014
Posted on FB; 7th Oct. 2014
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