मिथिला भने आइयो एकटा अविकसित क्षेत्र लगैए,मुदा, कमसँ कम बारह अना मैथिल आब पछड़ल नहि रहलाह अछि । दू आखर'क बोध, देहभरि वस्त्र, माथपर चार आ भरिपेट अन्न भेटब आब एतय पराभव नहि छैक । भने से देश-विदेशमे बोनिए कमेलासँ किएक ने जुमैत हो । आर्थिक विपन्नतासँ अधिक हम सभ वर्तमान समयमे वैचारिक रूपसँ अधिक विपन्न छी । हमरा सभ गीत गाबि आनन्दित होइत छी-"जतय गुदरी पहिरि सिया आँगन निपय...", ई सोचक विपन्नता नहि थिक तँ आर की ? की हमर सभक राजदुलारी सियाकेँ गुदरीए जुमैत रहनि ? की जँ एकरा- जतय राज-कुम्मरि सिया आँगन निपय...कहलासँ मिथिलाक असल गौरवगान नहि होइतैक ??
मानसिक रूपेँ हमरा सभ तेहन ने दरिद्र छिम्मड़ि भऽ गेल छी जे अपन, अपन बाप-पुरखा'क परिचयधरि नुकबैत छी । ई बात दिगर जे जँ कियो, दुनियाक कोनो कोनमे मैथिलत्वकेँ अपन परिचिति बनबैत छथि, लोककेँ जनबैत छथि तँ बेसी सम्मानित होइत छथि । मुदा, बहुसंख्यक मैथिलकेँ मैथिलत्वकेँ अपन परिचिति कहयमे लजाइत छथि । हुनका अपन असल परिचिति पिछड़ापनक प्रमाणपत्र बुझाइत छनि । मुदा, जँ किनको मिथिला-मैथिलीक गौरवगान करयमे लाज होइत छनि कि अपनाकेँ मैथिल कहबामे गौरवबोध नहि होइत छनि तँ तकर माने मैथिलत्व कोनो तरहेँ हीन अछि से नहि, बल्कि ई हुनक हीनताबोध छनि, ई हुनकर व्यक्तिगत दोष छनि ।
अपन परिचितिक प्रति हीनताबोध मात्र किछु व्यक्ति वा व्यक्तिवर्ग
धरि सिमित नहि अछि अपित ई मिथिलाक रग-रगमे पैसल अछि । हमर सभक सोच-संस्कारमे पैसल अछि । संस्थासँ समाज धरि पसरल अछि । आ आब ई मात्र समस्या नहि त्रासदीक रूप धारण कए लेने अछि । टटका उदाहरण अछि जे मिथिला विश्वविद्यालयक मैथिली विभाग जकर ई जिम्मेबारी छैक जे ओ मैथिलीक नव पिढ़ी तैयार करय, मैथिलत्वक परिचितिकेँ सुदृढ़ करबा निमित्त ठोस आधार'क निर्माण करय, तकर प्रेस विज्ञप्ति पर्यन्त मैथिलीमे नहि लिखाइत अछि । तहिना अंतर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद जे पछिला दू दशकसँ बेसी समयसँ मिथिला-मैथिली आ मैथिलक अधिकार लेल लड़बाक दावा करैत अछि तकरो कोनो प्रेसविज्ञप्ति मैथिलेत्तर भाषहिमे भेटैत अछि । ई दू टा संस्था मात्र दू-गोट उदाहरण अछि । मिथिलाक प्रायः हरेक संस्थाक इएह हाल छैक । से सरकारी हो वा गैर-सरकारी । जाहि समाजक नीति-निर्धारक, भविष्य-निर्देशके तत्व सभक नजरिमे मिथिला-मैथिली आ मैथिलत्व दोयम दर्जाक अछि ओतुका आम जनताक नाड़ीमे जँ फेर अपन मूल परिचितिक प्रति घृणा-तिरस्कार बहि रहल छैक तँ एहिमे कोन आश्चर्य । मुदा अन्तिम प्रश्न एकहि टा जे जखन सभक उद्देश्य मैथिलत्वकेँ उपटायबे अछि तखन फेर एना अनेक किएक छी ? आउ सभ मिलि-जुलि क' उपटाबी । कमसँ कम एहू लाथेँ तँ हमर सभक एकटा नव परिचिति "मतैक्यता" तँ दोसर क्षेत्रक लोककेँ देखेतैक आ हमर सभक वैचारिक विपन्नता अढ़ होयत ।
धरि सिमित नहि अछि अपित ई मिथिलाक रग-रगमे पैसल अछि । हमर सभक सोच-संस्कारमे पैसल अछि । संस्थासँ समाज धरि पसरल अछि । आ आब ई मात्र समस्या नहि त्रासदीक रूप धारण कए लेने अछि । टटका उदाहरण अछि जे मिथिला विश्वविद्यालयक मैथिली विभाग जकर ई जिम्मेबारी छैक जे ओ मैथिलीक नव पिढ़ी तैयार करय, मैथिलत्वक परिचितिकेँ सुदृढ़ करबा निमित्त ठोस आधार'क निर्माण करय, तकर प्रेस विज्ञप्ति पर्यन्त मैथिलीमे नहि लिखाइत अछि । तहिना अंतर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद जे पछिला दू दशकसँ बेसी समयसँ मिथिला-मैथिली आ मैथिलक अधिकार लेल लड़बाक दावा करैत अछि तकरो कोनो प्रेसविज्ञप्ति मैथिलेत्तर भाषहिमे भेटैत अछि । ई दू टा संस्था मात्र दू-गोट उदाहरण अछि । मिथिलाक प्रायः हरेक संस्थाक इएह हाल छैक । से सरकारी हो वा गैर-सरकारी । जाहि समाजक नीति-निर्धारक, भविष्य-निर्देशके तत्व सभक नजरिमे मिथिला-मैथिली आ मैथिलत्व दोयम दर्जाक अछि ओतुका आम जनताक नाड़ीमे जँ फेर अपन मूल परिचितिक प्रति घृणा-तिरस्कार बहि रहल छैक तँ एहिमे कोन आश्चर्य । मुदा अन्तिम प्रश्न एकहि टा जे जखन सभक उद्देश्य मैथिलत्वकेँ उपटायबे अछि तखन फेर एना अनेक किएक छी ? आउ सभ मिलि-जुलि क' उपटाबी । कमसँ कम एहू लाथेँ तँ हमर सभक एकटा नव परिचिति "मतैक्यता" तँ दोसर क्षेत्रक लोककेँ देखेतैक आ हमर सभक वैचारिक विपन्नता अढ़ होयत ।
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