Monday, January 5, 2015

मिथिला आन्दोलनक विफलताक सूत्र

"...भारत जखन स्वतन्त्र भेल तखनसँ यत्र-तत्र मिथिला प्रदेशक स्थापनाक माङ कएल गेल । ई माङ केवल भाषागत तर्कक आधार पर नहि छल...मिथिला प्रदेशक स्थापनाक माङ स्थानीय सम्भ्रान्त ब्राह्मणवर्गक हितकेँ प्रतिबिम्बित करैत छल; आ ओहिसँ व्यापक मैथिल जनसमुदायमे कोनो उत्साह नहि आयल...दरभंगाक भूतपूर्व महाराजा एहि माङक समर्थन कएलनि, कारण, एहिमे हुनका अपन राजनीतिक प्रभुत्व पुनः स्थापित करबाक अवसर देखाइत छलनि । "- बोरिस क्लूयेभ (स्वतन्त्र भारतः जातीय तथा भाषाई समस्याएँ,1978), मैथिली रूपान्तरण-मोहन भारद्वाज, साभार-जिज्ञासा ।

उक्त कथन केर एकटा महत्वपूर्ण आधार अछि-

"...मैथिलीभाषी उत्तर बिहारमे पृथक मिथिला गणराज्य लेल लक्ष्मण झाक आन्दोलन सामान्य जनताक नजरिमे बिहारक राजनीतिमे राजपूत आ भूमिहारक राजनीतिक एकाधिकारसँ सर्वथा भिन्न सत्ताक अनन्य क्षेत्र प्राप्त करबाक दरभंगाक मैथिल ब्राह्मणक आकांक्षाकेँ देखार करैत अछि ।"- एस.एस.हैरिसन, (इण्डिया द मोस्ट डेन्जरस डिकेड्स-1960, पृ.110)

उक्त दुनू कथन केर स्वतन्त्र विवेचनासँ मिथिला आन्दोलनक अपरिपक्व आरम्भ ओ संकुचित विचारधाराक स्पष्ट उदाहरण भेटि सकैए । पछिला साठि बरखक विफलताक सूत्र सेहो ।


Posted on Facebook on 2nd Sept.2014.

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