लोकप्रिय साहित्य साहित्यकारकेँ समाजसँ प्रत्यक्षतः जोड़ैत छैक । मैथिलीमे विद्यापति आ चन्दा झाक साहित्यक जनप्रियता सर्वविदित अछि । बीसम सदीमे यात्री, हरिमोहन, मधुप आ अमर'क साहित्य बेस लोकप्रिय भेल । एकर माने ई नहि जे हिनक समकालीन आन-आन साहित्यकार लोकनिक साहित्यमे जन-सरोकार नहि छल कि कोनो हिसाबे कनियो दब छल । सुमन, ललित, राजकमल आदिक साहित्य मैथिलीक धरोहर थिक । मुदा, यात्री, हरिमोहन, मधुप ओ अमरक रचनामे तत्कालीन सामान्य पाठककेँ सहज आकर्षित करबाक क्षमता कोनो आन साहित्यकारसँ बेसी अवश्य छल । सुमन, ललित कि राजकमल'क साहित्यमे प्रबुद्ध पाठकवर्गकेँ अपरिमित सामग्री भेटैत छलनि । हरिमोहन झा, ललित, राजकमल आदि नवतावादी लोकनि जतय अपन साहित्यमे नवीन विषयवस्तुक सहज समावेश केलनि नवशैलीमे गढ़लनि ओ नव ढंगसँ फ्रेम केलनि ओतहि अमर-मधुप सन साहित्यकारक साहित्यमे समकालीन ओ प्रगतिशील विषयवस्तु त' पुष्टमात्रामे शामिल भेल मुदा, हिनकर सभक फ्रेम पारंपरिक छल । संभवतः तेँ किछु नवतावादी लोकनि हिनका सभकेँ परंपरावादी बुझैत रहलाह । मुदा, संभवतः इएह पारंपरिक फ्रेम हिनका सभकेँ लोकप्रिय सेहो बनेबामे सहायक भेल । यात्रीक साहित्यमे विषयवस्तु नव त' अछिये संगहि हुनकर शैली सेहो नव आ पारंपरिक दुनूक सामंजस्य बनबैत अछि । मधुप-अमरकेँ किछु वर्ग भलेँ परंपरावादी मानैत होनि मुदा, मैथिली साहित्यक इतिहासकार लोकनिक मत सर्वथा भिन्न अछि । प्रो. राधाकृष्ण चौधरी लिखैत छथि -
"Chandranath Mishra 'Amara' in one of the most progressive poets of Mithila and occupies a very high place among the modern poets, critics, storywriters and prose writers. he deals with all types of social oddities and some of his poems reveal the true chrateristics of the moder Maithil Society...He generally keeps his audience spellbound whenever he recites his poems and his only rival in the respect is 'Madhupa' whose melodious voice lulls the audience. 'Amara' wants to know more closely his people and he has reached a higher stage in his creation to-day...he is not a Marxist but his poems reflects the feelings of lower middle class..."
साम्यवाद मध्यम ओ निम्न मध्यमवर्गकेँ संसारक हरेक क्षेत्रमे आकर्षक लगैत छैक । मुदा, समाजवादक चरम स्वरूपक अनुपालन एतेक सहज नहि । ई सैद्धांतिक रूपेँ जतबे आकर्षक अछि ततबे व्यवाहरि दृष्टिकोणसँ दुरूह सेहो । सामान्यतः साहित्यकार लोकनि प्रगतिवादकेँ साम्यवादक पर्याय मानि लैत छथि । मुदा, अधिकांश व्यवहारतः पछरि जाइत छथि । एतहि ओ सभ साहित्य दू टा महत्वपूर्ण तत्व देश ओ कालसँ दुर भऽ जाइत छथि । बौद्धिक दृष्टिकोणसँ उत्तमसँ उत्तम रचना सामाजिक स्तरपर अनुपयोगी साबित होइए । एहने साहित्य सभ जन-सरोकारसँ परिपूर्ण रहितहुँ जनप्रिय नहि भऽ पबैत अछि । वस्तुतः ई साहित्यकारक विफलते थिक । ओ मानव समाजक पीड़ा, आशा-आकांक्षा त' अकानि सकैए मुदा अोकरा उचित शब्द देबामे हूसि सकैए । प्रायः एहने साहित्यकार लोकनिक जन्मसँ प्रतिवाद ओ प्रतिक्रियावाद प्रगतिवादक संज्ञासँ विभूषित भेल अछि । एहने प्रगतिवादी साहित्यक मैथिली साहित्यमे पछिला किछु दशकमे बाढ़ि सन आबि गेल अछि । वस्तुतः एहना सन लगैए जे हिनका सभक हेतु साहित्य "पैशन" नहि "फैशन" बनि गेल अछि । प्रायः हिनकर सभक मानब छनि जे मार्क्स-लेनिन, कि रूस-वियतनामक चर्चा मात्रसँ ई सभ मिथिलामे प्रगतिवादी कहि विभूषित हेताह । असलमे हिनका सभकेँ इहो नहि बूझल छनि जे मिथिलामे मार्क्स-लेनिनक ओ सभटा सिद्धान्त नहि चलि सकत जे रूस कि वियतनाममे हिट केलक ।
एहने तथाकथित नवलेखनक विरुद्ध १९६८ ई.मे "मैथिली कविता"क प्रवेशांकक संपादकीयमे श्री नचिकेता लिखैत छथि-" रसात्म बोधसँ वंचित, विवेक और बुद्धियहुसँ विरहित, कवि-कर्मक दुरूहतासँ विमुक्त, फोकटिया यशक लिप्सासँ अभिभूत, राष्ट्र-धर्म-संस्कृतिक विरोधकेँ कर्तव्य बुझनिहार, कुंठा, नपुंशकता, हीनता और संत्राससँ प्रपीड़ित, नव-रूढ़ि-जालमे आबद्ध हैबाक प्रेमी एवं संकीर्ण सम्प्रदायमे अन्तर्भुक्त, तथाकथित साहित्यकार लोकनिक द्वारा नव लेखनक नामपर पश्चिमक विकृतिक अनुकरण और दुर्द्रव्यक सम्मिश्रण कैने क्यो बड़ जोर "अकवि" भऽ सकैछ, "कवि" नहि । नव कवि लोकनिकेँ सब वस्तु सँ विरोध छन्हि । पुरान नामहिसँ ई लोकनि तहिना भड़कैत छथि जेना कारी छत्तासँ महींस । धर्म पुरान भऽ गेल छैक । तैँ हिनका पसिन नहि । सामाजिक व्यवस्था पुरान भ' गेल छैक । तैं हिनका वर्तमान समाज-व्यवस्था पसिन नहि । राष्ट्रीयताक नारा पुरान भ' गेल छैक । तैँ आब राष्ट्र-विरोधक नारा हिनका नीक लगैत छन्हि । अपन देशमे पसरल दुःख, दरिद्रता, अविद्या और कुरीतकेँ दूर करबाक लेल ई लोकनि शिव संकल्प नहि क' सकैत छथि, कियैक त' हिनका लोकनिक अन्तःकरण विश्व चेतनासँ उद्भावित रहैत छन्हि । चीनी साम्राज्यवादीक गोलीसँ बिद्ध तथा पद-दलित अपन भाइ बन्धुक लहास हिनक हृदय विदीर्ण नहि कैलकन्हि, किन्तु वियतनामक गोली काण्डसँ ई आइ अश्रु-मोचन क' रहल छथि ।
भारतवर्षमे रहितहु बैशाख-जेठक प्रचंड उत्तापहुमे ई लोकनि साइबेरिया निवासी सब जकाँ हू-हू-हू-हू क' कए शीतसँ थर-थर कांपबाक स्वांग भरताह, कियैक त' विश्व चेतनासँ अनुप्राणित जे छथि ! अपन पास-पड़ोसीक क्रन्दनकेँ और निराशाकेँ बुझबाक हिनका पलखति नहि छनि, हुनका लोकनिकेँ सहयोग देबाक वा समाजक नव निर्माण करबाक हिनका अवकाश नहि छन्हि, कि अपन माटि-पानिक दिसि निहारबाक हिनका दरकार नहि छन्हि, कियैक त' ताहिसँ विश्व-चेतनासँ अनुप्राणित हेबाक कोन प्रमाण भेटतनि ? ई सत्य जे आजुक युगमे क्यो विश्व-भरिक घटना चक्रसँ अप्रभावित नहि रहि सकैछ आ ने आयास पूर्वक अप्रभावित रहबाक चाही, किन्तु ईहो सत्य जे जकरा अपन घर, अपन समज वा अपन देशक विभीषिका अनुप्रेरित नहि क' सकलैक से केवल अनहिक दयनीयतासँ प्रभावित हैबाक स्वांग करैछ त ओ भयानक दम्भी और मिथ्याचारी (फ्रॉड) मानल जायत ।"
एहने तथाकथित विश्व-चैतन्य ओ लोक-अवचेतन साहित्यकार लोकनिक कृत्य आइ मैथिली साहित्यकेँ अलोकप्रियताक शिखर दिसि ठेलने जा रहल अछि । समयक संग चलब साहित्य कारक कर्तव्य थिक । संगहि-संग समाजकेँ चलाएब दायित्व सेहो । मुदा, समकालीनताक अढ़मे मूलसँ दुराव नहि हेबाक चाही । अन्यथा भाषा-साहित्यक संप्रेषणीयता तत्व घटत । जनसरोकारक अछैतहु जन-चेतनाक संवाहन नहि बनि सकत आ क्रमशः सांस्कृति लोप होयत ।
Posted On Facebook 18th April 2014
Saturday, January 3, 2015
लोकप्रिय साहित्यक महत्व
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