Saturday, January 3, 2015

शरयन्त्र परीक्षा

"सभा बीच पाण्डित्य-परीक्षाक परम्परा मिथिलामे डेढ़-दू सए (आब अढ़ाइ-तीन सए) वर्ष पूर्व धरि प्रचलित छल । जखन केओ पण्डित यश आ अर्थ अर्जित कए घर घुरैत छलाह, आ अपनाकेँ तद्योग्य बुझैत छलाह तँ देशक लोकबीच घोषणा करैत छलाह-'सुनैत जाइ जाउ । हम विदेशमे खूब नाम कमाए घर घुरलहुँ अछि किन्तु दूर देश मे अर्जित एहन वस्तु कोन काजक जे घरमे ने ओकरा शत्रु देखि सकए, ने मित्र भोगि सकए ? तेँ हमरा बड़ मनोरथ अछि जे अपन घरमे प्रतिष्ठा पाबी । मिथिलामे सदासँ पाण्डित्यक सभसँ पैघ प्रतिष्ठा शरयन्त्र लेब मानल जाए रहल अछि । तेँ हम चाहैत छी जे हमर शरयन्त्र-परीक्षा लेल जाए ।'
परीक्षाक रीति एना छल । पहिने देश भरिक पण्डितलोकनि कोनो एक शास्त्रक नहि, सकल शास्त्रक कठिनसँ कठिन प्रश्न पूछथि । ओहि सभ प्रश्नक समीचीन उत्तर उपस्थित समस्त पण्डितमण्डलीक समक्ष देल जाए । जखन पण्डितलोकनि हुनक उत्तरसँ सन्तुष्ट भए जाथि, तखन साधारण जन प्रश्न करथि । केओ व्यक्ति जे कोनो प्रश्न चाहथि पूछि सकैत छलथिन्ह । प्रत्येक व्यक्तिक प्रश्नक उत्तर सकल जनसमुदायक समाधान करैत देबाक होइत छल । एहि प्रकारेँ जखन समामे उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति सन्तुष्ट भए जाथि, तखनहि हुनका शरयन्त्रीक उपाधि देल जाए । "-डॉ. सर गङ्गानाथ झाक "कविरहस्य"सँ उद्धृत, साभार जिज्ञासा ।
Posted on Facebook on 3rd August 2014


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