Monday, January 5, 2015

एकटा किवदन्ती

एकटा किवदन्ती अछि जे- यमुना अपन भाइ यमकेँ बेर-बेर निमन्त्रित करैत छलीह मुदा, यम हुनका ओतय जेबाक हेतु समय नहि निकालि पबैत छलाह । एकबेर अचानक, कार्तिक कृष्ण द्वितीया तिथिकेँ यम यमुना ओतय पहुँचलाह आ यमुना हुनकर स्वागत करैत खान-पानक विशेष आयोजन केलनि । तहियेँ भ्रातृद्वितीय पाबनिक परम्परा चलल । एहि हिसाबेँ तँ..."यमुना नोतल यमकेँ..." हेबाक चाही । दोसर गप्प जे गंगा-यमुनाकेँ बहिन कहल जाइत छनि तखन फेर गंगा यमुनाकेँ किएक नोत देथिन्ह । एहिमे बहिन द्वारा भाइकेँ नोतबाक परम्परा छैक नहि कि बहिनकेँ...एहू अर्थमे-"गंगा नोतल यमुनाकेँ..."ठीक नहि बुझना जाइत अछि ।हमरा लगैए जे---एहि कहबीक दोसर पाँति- "...जहिना गंगा-यमुनाक धारा बहय...तहिना हमर भाइक औरदा बढ़य" संग उपरका पाँतिक घाल-मेल भऽ गेल हेतैक । प्रायः एकर शुद्ध रूप एना होयत - " यमुना नोतल यमकेँ हम नोतइ छी भाइकेँ । जहिना गंगा-यमुनाक धारा बहय...तहिना हमर भाइक औरदा बढ़य"

Posted on FB on 28th Oct. 2014

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