Thursday, January 22, 2015

भेद चिनवार आ ऐंठारमे

चंदन कुमार झा मैथिली कविताक नव मिजाज। चंदन कुमार झा नव से ठीक, मुदा मैथिली कविताक नव मिजाज कोना! ज एकहि वाक्यमे कह परएत कहब अपन संभावनामे। ‘धरतीसँ अकास धरि’ हुनकर जे काव्यपोथी से कविताक नव संभावनासँ संपन्न प्रस्थान। प्रस्थानके प्रस्थाने बूझि। ई ठीक जे कचास छै कवितामे, भेनाइये स्वाभाविक। एहि कचासक संगे कवितामे शब्द-व्यवहारक जे सहज रचाव ओ निश्चिते बहुत आश्वस्तकर। बहुत सैद्धांतिक विस्तारमे नहि जा, कविता शब्द-व्यवहारक रचाव पर एकटा संकेत केनाइ जरूरी। रूपकमे कही। शब्दक एक रूप संस्कृतिक गाछमे नित्य विकसित फूल जकाँ होइत अछि। डारि पर विराजैत एकटा फूल के जगह पर आर एकटा फूल आबि जाइत छैक। प्रकृतिक नित्य नूतनताक इएह विधान। डारिसँ टूटल फूलोमे खाली ओहि गाछे टाक नहि, मुदा संपूर्ण प्रकृति साँस लैत छै। एहन टटका फूलसँ बनाओल मालाक अपन सौंदर्य होइत छै, आ से कम नहि। कवितामे एहन ताजा फूल बहुत दिन तक साँस लैत रहैत छै। मुदा कविताक असली कारिगरी जे फूल डारियेमे रहए आ माला तैयार! एहन कवितामे कचास प्राणक स्पंदक प्रमाणत होइते छै ओ अपना संग-संग अपन पाठकके अपन घर-आँगनमे हाथ पकड़िक ल जाइत छै। एकरा एना बूझियोक बूझल नहि जा सकैत अछि। बूझ आ अ-बूझक बीच कविता ओहि विशाल परतीक विधान क लैत अछि जाहि परती पर पैर टिका कविता अपन केश आकाशक विस्तारमे सुखबैत छैथ-
सौंदर्यक ऐंद्रिक विराटताक प्रावधान कविताक संधान आ नव मिजाजक प्रस्थान बनि जाइत छै। मैथिलक जातीय सौंदर्यबोधमे प्रकृति आ स्त्रीक सहमेलक अदभुत ऐंद्रिकताक निवासमे निहित सौंदर्यक डर आ डरक सौंदर्यके चिन्हबाक चाही। एहि चिन्हापरिचैसँ नीक लागत, अपनहु मनोजगतके जगैत नजरिसँ देखबाक आनंद भेट सकैत अछि। मुदा एहि पर विस्तारमे अनत, एत हम कहब जे चंदन कुमार झाक कविता ‘डरबैछ राति’ पढ़ू--

Tuesday, January 13, 2015

मैथिली गजल-गायिकी'क संभावना

गजल आब मैथिली साहित्यक एकटा स्थापित विधा थिक । एकर एकसय बरखक इतिहास छैक । हँ एखन धरि जे मैथिली गजल लिखल गेल अछि ताहिमे जँ स्वस्थ्य-सुपक रचना अछि तँ किछु कनाह-कोतर सेहो भ' सकैए, आ से तकरा अस्वाभविको नहि कहल जा सकैछ । कोनो फसिलमे एको दाना मरहन्ना नहि होइ से की संभव छैक ? लेखनक दृष्टिएँ स्थापित विधा भेलाक अछैतो जँ मैथिली गजल एखनो नव आ आयातित केर तगमेसँ पहिचानल जाइत अछि हमरा सभक बीच तँ तकर एकटा महत्वपूर्ण कारण इएह छैक जे मैथिली गजल-गायिकी पर विमर्श नहि भेल अछि एखन धरि । गजल गायनसँ हमर सभक संगीतज्ञ उदासीन रहलाह अछि । जहाँधरि मैथिली गजलक (कैसेटक) सफलता कि असफलताक प्रश्न छैक तँ तकर प्रश्न तँ तखन उठाएल जेबाक चाही जखन एहि क्षेत्रमे किछु प्रयोग हेतैक । जहाँधरि संभावना'क प्रश्न छैक तँ हमरा नहि लगैए जे दसो प्रतिशत एहन मैथिल हेताह जिनका घरमे, मेहदी हसन, गुलाम अली, हरिहरन, अनूप जलोटा, आदिक कैसेट नहि बजैत हेतनि कि इ सभ गजल गायक अलोकप्रिय हेताह । तखन फेर जँ श्रोताकेँ मैथिली गजलमे वएह भाव, वएह रस आ वएह लय-स्वर भेटतनि तँ कोना ओकरा अबडेरि सकताह ? 
अपना संगीतक कोनो ज्ञान नहि हेबाक बादहुँ हमरा ई कहबामे कनियो असोकर्य नहि भ' रहल अछि जे आजुक अधिकांश मैथिली गायककेँ संगीतक ज्ञानक घोर अभाव छनि आ मात्र टाका ओ टेक्नॉलोजीक बलेँ "थर्ड-क्लास" कैसेट रेकर्ड करबाक व्यसन लागल छनि । संगीतक असल मर्मधरि पहुचबामे डर होइत छनि । फुहरता'क बलेँ "स्टारडम" चाहैत छथि । आ तकरे परिणाम थिक जे संघर्ष करैत-करैत सोझे "ड्रग्स एडिक्ट" भ' जाइत छथि आ अपन जीवनकेँ सेहो नर्कमे धकेलि दैत छथि । हमरा नजरिमे एखन बहुत कम्मे मैथिली गायक (जिनका सभकेँ हम सुनने छी ताहिमेसँ) छथि जनिकामे गजल गेबाक क्षमता छनि आ ताहिमे - हरिनाथ झा, रजनी पल्लवी, साहित्य आ संगीत मल्लिक आदि प्रमुख छथि ।

Posted on FB 13th Jan.2015

Thursday, January 8, 2015

हमर सभक वैचारिक दरिद्रता

मिथिला भने आइयो एकटा अविकसित क्षेत्र लगैए,मुदा, कमसँ कम बारह अना मैथिल आब पछड़ल नहि रहलाह अछि । दू आखर'क बोध, देहभरि वस्त्र, माथपर चार आ भरिपेट अन्न भेटब आब एतय पराभव नहि छैक । भने से देश-विदेशमे बोनिए कमेलासँ किएक ने जुमैत हो । आर्थिक विपन्नतासँ अधिक हम सभ वर्तमान समयमे वैचारिक रूपसँ अधिक विपन्न छी । हमरा सभ गीत गाबि आनन्दित होइत छी-"जतय गुदरी पहिरि सिया आँगन निपय...", ई सोचक विपन्नता नहि थिक तँ आर की ? की हमर सभक राजदुलारी सियाकेँ गुदरीए जुमैत रहनि ? की जँ एकरा- जतय राज-कुम्मरि सिया आँगन निपय...कहलासँ मिथिलाक असल गौरवगान नहि होइतैक ??

मानसिक रूपेँ हमरा सभ तेहन ने दरिद्र छिम्मड़ि भऽ गेल छी जे अपन, अपन बाप-पुरखा'क परिचयधरि नुकबैत छी । ई बात दिगर जे जँ कियो, दुनियाक कोनो कोनमे मैथिलत्वकेँ अपन परिचिति बनबैत छथि, लोककेँ जनबैत छथि तँ बेसी सम्मानित होइत छथि । मुदा, बहुसंख्यक मैथिलकेँ मैथिलत्वकेँ अपन परिचिति कहयमे लजाइत छथि । हुनका अपन असल परिचिति पिछड़ापनक प्रमाणपत्र बुझाइत छनि । मुदा, जँ किनको मिथिला-मैथिलीक गौरवगान करयमे लाज होइत छनि कि अपनाकेँ मैथिल कहबामे गौरवबोध नहि होइत छनि तँ तकर माने मैथिलत्व कोनो तरहेँ हीन अछि से नहि, बल्कि ई हुनक हीनताबोध छनि, ई हुनकर व्यक्तिगत दोष छनि ।


अपन परिचितिक प्रति हीनताबोध मात्र किछु व्यक्ति वा व्यक्तिवर्ग

Monday, January 5, 2015

एकटा किवदन्ती

एकटा किवदन्ती अछि जे- यमुना अपन भाइ यमकेँ बेर-बेर निमन्त्रित करैत छलीह मुदा, यम हुनका ओतय जेबाक हेतु समय नहि निकालि पबैत छलाह । एकबेर अचानक, कार्तिक कृष्ण द्वितीया तिथिकेँ यम यमुना ओतय पहुँचलाह आ यमुना हुनकर स्वागत करैत खान-पानक विशेष आयोजन केलनि । तहियेँ भ्रातृद्वितीय पाबनिक परम्परा चलल । एहि हिसाबेँ तँ..."यमुना नोतल यमकेँ..." हेबाक चाही । दोसर गप्प जे गंगा-यमुनाकेँ बहिन कहल जाइत छनि तखन फेर गंगा यमुनाकेँ किएक नोत देथिन्ह । एहिमे बहिन द्वारा भाइकेँ नोतबाक परम्परा छैक नहि कि बहिनकेँ...एहू अर्थमे-"गंगा नोतल यमुनाकेँ..."ठीक नहि बुझना जाइत अछि ।हमरा लगैए जे---एहि कहबीक दोसर पाँति- "...जहिना गंगा-यमुनाक धारा बहय...तहिना हमर भाइक औरदा बढ़य" संग उपरका पाँतिक घाल-मेल भऽ गेल हेतैक । प्रायः एकर शुद्ध रूप एना होयत - " यमुना नोतल यमकेँ हम नोतइ छी भाइकेँ । जहिना गंगा-यमुनाक धारा बहय...तहिना हमर भाइक औरदा बढ़य"

Posted on FB on 28th Oct. 2014

फेसबुकपर मिथिला-मैथिली

पछिला तीन-चारि बरखमे फेसबुकपर वा एकर माध्यमसँ मिथिला-मैथिलीक संदर्भमे जे किछु महत्वपूर्ण विषय चर्चित भेल अछि, से हमरा जनैत निम्नलिखित अछिः-
१.विद्यापति
२. मिथिलाक संस्कृतिमे पागक स्वीकार्यता
३. मैथिली रंगमंचक भूत, वर्तमान ओ भविष्य
४. मैथिली पत्रकारिता
५. मिथिलाक सामाजिक संगठन
६. मिथिला राज्य आन्दोलन
७. मैथिली आन्दोलन आ जनजागरण
८. आधुनिक मैथिली गीत आ नवगीत
९. मैथिली गजल
१०. जनकपुर बमकाण्ड
११. मायानन्दमिश्र,जीवकान्त आ महाप्रकाशक महाप्रयाण
१२. साहित्य अकादमी
१३. मैथिली-भोजपुरी अकादमी
१४. सगर राति दीप जरय
१५. कवि एकान्तक दिल्लीक अनशन
१६. मिरानिसेक गठन
१७. मिरानिसेक रथ-यात्रा
१८. दहेजमुक्त मिथिला
१९. प्राथमिक शिक्षामे मैथिलीक लेल अनूप चौधरीक पटनाक अनशन
२०. मिथिला विश्वविद्यालयमे दूरस्थ शिक्षामे मैथिलीक पढ़ौनी लेल कवि एकान्तक अनशन
...एकर अलावे जँ अहाँ सभकेँ कोनो आरो बात-विषय छूटल बुझाइत हो तँ अवश्य तकर उल्लेख करी, से आग्रह ।उपरोक्त विषय सभपर फेसबुक पर भेल तर्क-वितर्क केर लिंक एकत्रित करबामे सहयोग करी जाहिसँ धरातलपर फेसबुकक सार्थकता प्रमाणित करबामे समर्थ भऽ सकी ।


posted on Facebook on 7th Oct.2014

मिथिला आन्दोलनक विफलताक सूत्र

"...भारत जखन स्वतन्त्र भेल तखनसँ यत्र-तत्र मिथिला प्रदेशक स्थापनाक माङ कएल गेल । ई माङ केवल भाषागत तर्कक आधार पर नहि छल...मिथिला प्रदेशक स्थापनाक माङ स्थानीय सम्भ्रान्त ब्राह्मणवर्गक हितकेँ प्रतिबिम्बित करैत छल; आ ओहिसँ व्यापक मैथिल जनसमुदायमे कोनो उत्साह नहि आयल...दरभंगाक भूतपूर्व महाराजा एहि माङक समर्थन कएलनि, कारण, एहिमे हुनका अपन राजनीतिक प्रभुत्व पुनः स्थापित करबाक अवसर देखाइत छलनि । "- बोरिस क्लूयेभ (स्वतन्त्र भारतः जातीय तथा भाषाई समस्याएँ,1978), मैथिली रूपान्तरण-मोहन भारद्वाज, साभार-जिज्ञासा ।

उक्त कथन केर एकटा महत्वपूर्ण आधार अछि-

"...मैथिलीभाषी उत्तर बिहारमे पृथक मिथिला गणराज्य लेल लक्ष्मण झाक आन्दोलन सामान्य जनताक नजरिमे बिहारक राजनीतिमे राजपूत आ भूमिहारक राजनीतिक एकाधिकारसँ सर्वथा भिन्न सत्ताक अनन्य क्षेत्र प्राप्त करबाक दरभंगाक मैथिल ब्राह्मणक आकांक्षाकेँ देखार करैत अछि ।"- एस.एस.हैरिसन, (इण्डिया द मोस्ट डेन्जरस डिकेड्स-1960, पृ.110)

उक्त दुनू कथन केर स्वतन्त्र विवेचनासँ मिथिला आन्दोलनक अपरिपक्व आरम्भ ओ संकुचित विचारधाराक स्पष्ट उदाहरण भेटि सकैए । पछिला साठि बरखक विफलताक सूत्र सेहो ।


Posted on Facebook on 2nd Sept.2014.

Saturday, January 3, 2015

लोकप्रिय साहित्यक महत्व

लोकप्रिय साहित्य साहित्यकारकेँ समाजसँ प्रत्यक्षतः जोड़ैत छैक । मैथिलीमे विद्यापति आ चन्दा झाक साहित्यक जनप्रियता सर्वविदित अछि । बीसम सदीमे यात्री, हरिमोहन, मधुप आ अमर'क साहित्य बेस लोकप्रिय भेल । एकर माने ई नहि जे हिनक समकालीन आन-आन साहित्यकार लोकनिक साहित्यमे जन-सरोकार नहि छल कि कोनो हिसाबे कनियो दब छल । सुमन, ललित, राजकमल आदिक साहित्य मैथिलीक धरोहर थिक । मुदा, यात्री, हरिमोहन, मधुप ओ अमरक रचनामे तत्कालीन सामान्य पाठककेँ सहज आकर्षित करबाक क्षमता कोनो आन साहित्यकारसँ बेसी अवश्य छल । सुमन, ललित कि राजकमल'क साहित्यमे प्रबुद्ध पाठकवर्गकेँ अपरिमित सामग्री भेटैत छलनि । हरिमोहन झा, ललित, राजकमल आदि नवतावादी लोकनि जतय अपन साहित्यमे नवीन विषयवस्तुक सहज समावेश केलनि नवशैलीमे गढ़लनि ओ नव ढंगसँ फ्रेम केलनि ओतहि अमर-मधुप सन साहित्यकारक साहित्यमे समकालीन ओ प्रगतिशील विषयवस्तु त' पुष्टमात्रामे शामिल भेल मुदा, हिनकर सभक फ्रेम पारंपरिक छल । संभवतः तेँ किछु नवतावादी लोकनि हिनका सभकेँ परंपरावादी बुझैत रहलाह । मुदा, संभवतः इएह पारंपरिक फ्रेम हिनका सभकेँ लोकप्रिय सेहो बनेबामे सहायक भेल । यात्रीक साहित्यमे विषयवस्तु नव त' अछिये संगहि हुनकर शैली सेहो नव आ पारंपरिक दुनूक सामंजस्य बनबैत अछि । मधुप-अमरकेँ किछु वर्ग भलेँ परंपरावादी मानैत होनि मुदा, मैथिली साहित्यक इतिहासकार लोकनिक मत सर्वथा भिन्न अछि । प्रो. राधाकृष्ण चौधरी लिखैत छथि -
"Chandranath Mishra 'Amara' in one of the most progressive poets of Mithila and occupies a very high place among the modern poets, critics, storywriters and prose writers. he deals with all types of social oddities and some of his poems reveal the true chrateristics of the moder Maithil Society...He generally keeps his audience spellbound whenever he recites his poems and his only rival in the respect is 'Madhupa' whose melodious voice lulls the audience. 'Amara' wants to know more closely his people and he has reached a higher stage in his creation to-day...he is not a Marxist but his poems reflects the feelings of lower middle class..." 

शरयन्त्र परीक्षा

"सभा बीच पाण्डित्य-परीक्षाक परम्परा मिथिलामे डेढ़-दू सए (आब अढ़ाइ-तीन सए) वर्ष पूर्व धरि प्रचलित छल । जखन केओ पण्डित यश आ अर्थ अर्जित कए घर घुरैत छलाह, आ अपनाकेँ तद्योग्य बुझैत छलाह तँ देशक लोकबीच घोषणा करैत छलाह-'सुनैत जाइ जाउ । हम विदेशमे खूब नाम कमाए घर घुरलहुँ अछि किन्तु दूर देश मे अर्जित एहन वस्तु कोन काजक जे घरमे ने ओकरा शत्रु देखि सकए, ने मित्र भोगि सकए ? तेँ हमरा बड़ मनोरथ अछि जे अपन घरमे प्रतिष्ठा पाबी । मिथिलामे सदासँ पाण्डित्यक सभसँ पैघ प्रतिष्ठा शरयन्त्र लेब मानल जाए रहल अछि । तेँ हम चाहैत छी जे हमर शरयन्त्र-परीक्षा लेल जाए ।'
परीक्षाक रीति एना छल । पहिने देश भरिक पण्डितलोकनि कोनो एक शास्त्रक नहि, सकल शास्त्रक कठिनसँ कठिन प्रश्न पूछथि । ओहि सभ प्रश्नक समीचीन उत्तर उपस्थित समस्त पण्डितमण्डलीक समक्ष देल जाए । जखन पण्डितलोकनि हुनक उत्तरसँ सन्तुष्ट भए जाथि, तखन साधारण जन प्रश्न करथि । केओ व्यक्ति जे कोनो प्रश्न चाहथि पूछि सकैत छलथिन्ह । प्रत्येक व्यक्तिक प्रश्नक उत्तर सकल जनसमुदायक समाधान करैत देबाक होइत छल । एहि प्रकारेँ जखन समामे उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति सन्तुष्ट भए जाथि, तखनहि हुनका शरयन्त्रीक उपाधि देल जाए । "-डॉ. सर गङ्गानाथ झाक "कविरहस्य"सँ उद्धृत, साभार जिज्ञासा ।
Posted on Facebook on 3rd August 2014


कीर्तिनारायण मिश्र साहित्य सम्मान २०१४



अगड़म-बगड़म (कविता संग्रह)


धरतीसँ अकास धरि (कविता संग्रह)


मोनक बाात, गजल संग्रह


मोनक बात, गजल संग्रहक सीडी लोकार्पन दरभंगामे