Friday, September 4, 2015

'मैथिली नवगीत'क परिकल्पना-सूत्र

जनकंठमे बसल मैथिली लोकगीतसँ फराक विद्यापतिकालसँ मैथिलीमे लोकभाषा ओ लोकशैलीमे , साहित्यिक गीत लिखबाक जे नवीन गीति-परंपरा आरंभ भेल से उनैसम शताब्दीक अंतधरि कायम रहल । पछाति इहो गीति सभमे अधिकांश, अत्यधिक लोकप्रियताक कारणेँ लोकगीतेक नामसँ प्रचलित भेल अछि । बादमे आधुनिक मैथिली साहित्यक प्रणेता कवीश्वर चन्दा झा ताहि समयमे गीतिक प्रचलित शैली ओ स्वरकेँ नवस्वरूपमे प्रयोग कएलनि आ एतहिसँ आधुनिक मैथिली गीतिकाव्य परंपराक उद्भव भेल ।
डॉ.रमानन्द झा "रमण" लिखैत छथि जे आचार्य रमानाथ झा मैथिली गीत परंपराकेँ दू वर्गमे बँटने छथि- प्राचीन गीत आ नवीन गीत । आब एहि 'नवीन गीत'क परिकल्पनाक पाछाँ आचार्य रमानाथ झा जी कोन आधार प्रस्तुत कएने छथि से हमरा ज्ञात नहि अछि मुदा, प्रतीत होइत अछि जे चन्दा झा ओ परवर्ती गीतकार लोकनि द्वारा जे गीति-परंपरा अपनाओल गेल अछि आ बीसम शताब्दीमे मैथिली गीतिक जे विभिन्न स्वरूपक प्रचलन भेल अछि से सभ एहिमे शामिल भेल होयत । 
डॉ. शंभुनाथ सिंह १९३५सँ १९५० धरि, हिन्दी साहित्यमे नवगीतक अंकुरण काल मानलनि अछि मुदा, एतय स्पष्ट अछि जे आधुनिक मैथिली गीतिक प्रस्फुटन उनैसम-बीसम शताब्दीक संगमेपर भेल  अतः मैथिलीक आधुनिक गीतक परिकल्पना नितान्त मौलिक अछि  लेकिन हिन्दी नवगीतक नामकरण १९५९मे "गीतांगिनी"क बाद भेल आ संभवतः एकरे प्रभावसँ मैथिलीयोमे ई शब्द प्रचलित भेल होयत । 
जखन आधुनिक मैथिली गीतक विस्तृत परिधिकेँ देखैत छी तँ "नवगीत" एकर एकगोट अंगमात्र प्रतीत होइत अछि अर्थात् जहिन आधुनिक मैथिली कवितामे पछिला सय बरखमे अनेक धाराक जन्म भेल अछि आ सभटा समग्रतामे मात्र मैथिली कविता थिक तहिना नवगीत सेहो आधुनिक मैथिली गीतिकाव्यक एकटा नव संबोधन मात्र थिक ।

नवगीत कि आधुनिक गीतिकाव्यक विवेचना करैत काल ओकर रचनाकाल, छन्दविधान एवं काव्य-तत्वपर समग्र दृष्टि राखब अनिवार्य अछि । निश्चित रूपेँ आधुनिको कालमे मैथिलीमे एहन गीत लिखल गेल होयत जे प्राचीन लोकगीत-गीतिकाव्यसँ प्रेरित अछि आ आधुनिक शैलीक अछैतो ओकर काव्यतत्व प्राचीन होयत । तहिना पारंपरिक छन्दशास्त्रक उपयोग करैत समकालीन विषय-वस्तुपर उत्कृष्ट गीतक रचना सेहो भेल होयत वा भऽ सकैत अछि । आधुनिक गीत कि नवगीतमे काव्य-तत्वक अभिनवता ओ गेयता ओकर प्राण तत्व छैक, तेँ मात्र रचनाकालक आधारपर कि छन्दशास्त्रक अनुपालनक आधारपर कोनो गीतकेँ आधुनिक कि प्राचीन कहब उचित नहि । आधुनिक मैथिली गीत कि नवगीतक सम्बन्धमे जे भ्रम पसरल अछि तकर निवारण हेतु आवश्यक अछि जे एकर काव्यशास्त्रीय विवेचन कएल जयवाक आवश्यकता अछि ।


Posted on FB; 7th Oct. 2014

Saturday, June 6, 2015

धरतीसँ अकास धरि

समकालीन मैथिली साहित्यमे युवा कवि लोकनिमे चंदनकुमार झा विशिष्ट ओ सशक्त हस्ताक्षरके रुपमे द्रुत गतिसं उभरि कए समुपस्थित भेलाह अछि । कवि चंदनकुमार जीक पहिल कविता - संग्रह "धरतीसँ अकास धरि" मानवीय  संवेदना  मूल्यकें  सुस्थापित करबाक समीचीन आह्वान, मानव  हृदयक विविध भाव-भंगिमा, भाषा, समाज, संस्कृतिक संरक्षण  आ अनुरक्षण पर चिन्तन - मनन, सामाजिक सरोकारादिक एकटा उत्कृष्ट काव्यात्मक अभिव्यक्ति अछि । हुनकर कवितामे  सहजता,  सरलता, भाव-सम्पृक्तता, स्वाभाविकता, प्रेम-पल्लवक कोमलता, मिथिला माइट-पाइनक सुगंध, समयसं लड़बाक अभिरुचि,  विषम परिस्थितिकें स्वीकार्य करबाक क्षमता आदि व्यक्त-अभिव्यक्त कयल गेल अछि । मोनमे उठैत भावकें सहजे कहि देल गेल अछि ।

चंदनजी अपन कविताक माध्यमे धरतीपर पसरल जंगल आ जंजालक मध्य ससरैत
 'भ्रम' 'गनगोआरि',ललकारा दैत 'भय' 'बिहाड़ि'क बादो 'फ़ेर हेतैक भोर' 'आस'केर 'दीप' जरा कए रखने छैथ । सुन्नर भविष्यक सपनाके साकार करबाक वास्ते कविमनमे 'पोथी पतरा पढैत कालो' 'आत्माक विलाप', 'मोनक बात', 'मोनमे उठैत प्रश्न'क उत्तर तकबाक प्रयासमे हुनक दृष्टि कखनो मिथिलागाम दिस त' कखनो मुम्बई महानगरीक चौक-चौराहा 'मरीन ड्राइव' चलि जायत अछि । बदलैत ग्राम्य- व्यवस्थाक बादो, मातृभूमिक रक्षार्थ सदति तैयार सपूतकें 'शत शत नमन'क लेल नतमस्तक चंदनक मोनमे 'कर्मफ़लक प्राप्ति', 'जीवन-यात्रा' नीति संग प्रारंभ करबाक  नैतिकताक बोध करा रहल छैथ । कविता संग्रह आद्योपान्त पढला पर एहन बुझना जा रहल अछि जे संवेदनशील कवि चंदनजी 'जीवन पथ' पर चलबाक क्रममे 'करजा', 'बालु' ' अनधन अनेरुआ' सबके आत्मसात-स्वीकार करैत, जीवनक कटु यथार्थसं समझौता करैत अपन वेदनाके संवेदनशीलताक  संग 'छटपटाइत कविता' मे उत्सर्ग क' देने छैथ । कविमनमे बेर बेर उठैत 'जीवन-कथा' 'अनुत्तरित प्रश्न' 'महाप्रकाशक प्रति' जागल कवित्त भावक अभिव्यक्तिक संग उत्तरित भ' गेल अछि । कबित्तक बोध भ' गेला पर कवि 'बंद कलम'के खोलि क' भोरका कथा'क लेल मानवीय मूल्यक अवमूल्यन, वर्ग-संघर्ष, वहु-विषमताके विरुद्ध  'विद्रोह' स्वर मुखरित क' रहल छैथ । चेतना जागरणक वास्ते हुनकर मोनमे 'जरैत अछि दीप' जाहिसं 'डरबैछ राति'क अन्हरियाके भगाकए सत्यमेव जयतेक महागानक संग'  'सुखद भविष्यक आस' जागल बुझना जा रहल अछि।सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक विद्रूपताक तथाकथित 'विदूषक' केर 'लौल'के ' अकान' करैत'लोकतंत्रक परिधिमे' सेन्ह मारिक' भ्रष्ट जनतंत्रक तमाशा देखावल गेल अछि 'धरती सं अकास धरि' । अपन कविताक मादे जीवनक मर्मस्पर्शी अनुभूतिक संगहि नारी- मात्रृप्रेमक बात धएने चंदनजी  ' धिया-पुता केर/ आंग-समांगक चिन्तामे मग्न ''मैय्या'क बहन्ने बूढ-पुरैनक दयनीय स्थिति पर अपन चिन्ता सेहो व्यक्त करैत छैथ।


अर्थबाद ओ बाजारबादक बाढिसं कटि रहल महत मिथिला, मधुर  मैथिली मैथिली भाखाप्रेमी आदिके ठामेठाम रोकबाक सचेष्ट प्रयास अछि चंदन जीक  "धरतीसँ अकास धरि" । कविता-संग्रह्मे समाहित रचना सामयिक,संवेदनशील, मर्मस्पर्शी, प्रभावशाली आ सकारात्मक अछि। किछु खांटी मैथिली शब्दक प्रयोग पाठक मनमे सहजे मिथिलाके समुपश्थित क' दैत अछि। ग्राम्य-परिवेशक खींचल प्राकृतिक दृश्य मनोहारी अछि। कवितामे भाव-गाम्भीर्यक परिदर्शन होयत अछि । अपन अपार शब्द-सम्पदा, वाक्य-विन्यास, बिम्ब-विधान, भावाभिव्यक्तिक क्षमताक, सरस, सरल, प्रांजल भाषाक अभिनव प्रयोगक ब'ले चंदनक नाम मैथिली साहित्यमे स्वर्णाक्षरमे अंकित-प्रत्यंकित बस्सेटा होयत, ई हमर पूर्ण विश्वास अछि।
शुभकामना सहित,

भास्करानन्द झा भास्कर

Wednesday, May 27, 2015

धरतीसँ अकास धरि


'धरतीसँ अकास धरि' मैथिली काव्य परम्पराक नवोदित नक्षत्रक आभासँ युक्त आद्योपान्त स्वानुभुत चिन्तनक प्रतिबिम्ब प्रतीत होइत अछि । सर्वत्र ग्राम्य ठेठ शब्दक प्रयोग प्रस्तुति कौशलक विलक्षणताकेँ दर्शबैत अछि । एहि काव्य संग्रहमे कविक संवेदना, सामाजिक सरोकार, सौन्दर्य वोध, अपन लग-पासक घटना ओही रूपमे अनुदित भेल अछि, तें अनायास लोककेँ आकर्षित करैत अछि । भूत आ वर्तमानक अनुभूति एवं भविष्यक चिन्ता विभाव-अनुभाव-संचारी भावक संयोग रूप रसनिष्पत्तिमे सहायक प्रतीत होइत अछि । कविक सभ कवितामे प्रायः उत्कृष्ट वा उत्कृष्टतम अन्वेषणक अपेक्षा नञ देखल जाइत अछि अपितु अपन मोनक तत्कालहि अनुदित भावक शब्दक प्रयोग काव्य सौन्दर्यकेँ विस्तृत करैछ । संग्रहक प्रथम कविता "कहि दैत छी" भगजोगनीसँ सूर्य धरि दृढ़आशा-विश्वासक अनुभूति करबैत अछि ।
एतावता ई काव्य संग्रह जीवनक संघर्ष, नव सृजनक प्रतीक रूपेँ उदित हेबाक सामर्थ्यसँ भरल-पुरल अछि । सभ कवितामे प्रकृतिमे सजीवनता दृष्टगोचर होइत अछि । रस अलंकार ध्वनिक निर्पेक्ष नाना व्यञ्जनोपभुक्त आनन्दोन्मुख तृप्तिक आभास सर्वथा होइछ । 

-सम्पादक ( प्रो. कृष्णकमार झा 'अण्वेषक' )

मैथिली दर्पण, फरवरी-मार्च-2015, अंकमे प्रकाशित

चंदनक 'संभावना':-माछ नै मैगी जकां



विभूति आनंद
आइ रवि अछि । छुट्टीक दिन । सिरमा मे कतोक दिन सं राखल अछि 'संभावना' । चंदन जीक सद्यःप्रकाशित 'हाइकू' कविता-संग्रह । खंड-खंड मे एकरा पढि चुकल छी । मूल सं पूर्व  रमण जीक विस्तृत भूमिका । फेर हिंदी कवयित्री सारिकाक दुटप्पी । फेर चंदनक ।
जापानी हाइकू कें चंदन कुमार झा बहुत कलात्मक ढंग सं मैथिली मे हाइजैक कयलनि अछि । प्रयोगमे तें सफल छथि । आरंभ मे हमरा ई हाइकू अबूझ लागल । फेर हम प्रयोग कयल । जखन मोन मे आयल, दू-चारि पढि, राखि दी । फेर तकरा गूनी । एहिना करैत, पढैत पूरा पोथी पढि गेलहुं । तें कोना कही जे नीक नै  लागल ! नीक तं लगबे कयल । तखन, माछ नै मैगी जकां लागल । नीक लगबाक एक कारण ईहो जे दूरक ढोल सोहाओन कोना लगै छै, से देखी ।
हं, एकरा पढैत मैथिली मे एकटा आर प्रयोग मोन पडैत रहल ! प्रवासी जी (मार्कण्डेय प्रवासी) , एकटा देसी प्रयोग कैने रहथि, आ जकरा नाम देने रहथिन -'तदर्थ' ! ईहो तिनपतिया छल । एक पुस्तक सेहो आयल रहनि - 'एतदर्थ' ! प्रसंगवश भूमिका मे एकर उल्लेख रहितय, जे प्रायः नहि अछि, तं नीक ।
मुदा एतय हमर चिंता अछि जे की चंदनक प्रयासकें उत्साहित कैल जयबाक चाही कि नहि ? व्यक्तिगत रूप सं हम प्रयोगक
पक्षधर रहल छी । 'चरिपतिया' समक्ष अछि ।
अंतिम शब्द, 
चिरंजीवी चंदन कें अशेष शुभकामना, एहि लेल जे ई आजुक मैथिलीक ललाटक चंदन छथि !










 Posted on FB; 25th May 2015.

"पचमेर" मधुप जीक १९४९ ई.मे प्रकाशित गीत-संग्रह थिकनि । एहिमे कुल ३७ गोट गीत संकलित अछि । श्रृंगार-भजनक अलावे एहि संग्रहक गीत सभमे सामाजिक रूढ़ि, जड़ता आ राजनैतिक छल-छद्मपर सेहो प्रहार कएल गेल अछि । एहि संग्रहक प्रायः सर्वाधिक लोकप्रिय गीत - हम जेबै कुशेश्वर भोर... थिक । ई गीत ओहि समयक थिक जहिया देशमे स्वतंत्रता टटका रहैक । मुदा एहि स्वतंत्रताक अवधारणामे महिला'क आत्मनिर्भता फरिच्छ नहि रहैक । मिथिलामे तँ एकदम्मे नहि । किन्तु "मधुप" जीक दृष्टि कतेक फरिच्छ रहनि, तत्कालीन सामाजिकतासँ हुनकर प्रतिवादो कतेक रसगर रहन्हि से एहि गीतक निम्न पाँती सभसँ अटकर लगाओल जा सकैछः-
"नहि संग पुरुषकेँ लै जेबै
जे इच्छा से किनि-किनि लेबै
युग भेल स्वतन्त्र, ककर ककरा छै भारा...
हम जेबै कुशेश्वर भोर
रंगि कै ठोर पहिरिकेँ काड़ा
झनकाय झनाझन छाड़ा...."
गीतांश,सौजन्यः- मधुपजीक बीछल बेरायल कविता, संपादक-फूलचन्द्र झा 'प्रवीण' 

"वर्णरत्नाकर"क चारिम कल्लोलमे चौंसठि कला'क उल्लेख अछि । एहिमे चौंसठि कलामे एक गोट कला अछि-"जलाघात" । विद्वान लोकनि एकर अर्थ-"पानि पीटब" कहैत छथि आ शंका व्यक्त करैत छथि जे ई कोन कला थिक ! ठिक्के पानि पीटयमे कोन कलाकारी चाही ? ओनहियो, अपना सभ ओतय कहबी सेहो छैक-पानि डेंगायब मने व्यर्थक काज ।मुदा, एहि पोथीमे कि तत्सम्बन्धी कोनो व्याख्यामे हमरा 'हेलब' शब्दक चर्च कतहु नजरिपर नहि पड़ल । की ई 'जलाघात' हेलब नहि भ' सकैत अछि ??

सम्भावना ( मैथिली हाइकु-सेनर्यु संग्रह)

हमर चारिम पोथी अगिला सप्ताहसँ विक्री'क हेतु उपलब्ध अछि । पोथीक दाम-१०० टाका अछि । इच्छुक पाठकवृन्द पोथी कीनबाक हेतु सम्पर्क करी -

चरिपतिया प्रसंग

वर्तमान समयमे जखन महाकाव्य प्रबंधकाव्य लिखब-पढब अप्रचलित,असुभितगर भेल जा रहल अछि, लघुआकारक काव्यविधा सभपर विमर्श उचित बुझना जाइछ । कखनोकाल एहनो लगैए जे भविष्यमे कोनो कविक सामर्थ्य एहिसं नापल जायत जे ओ कतेक कमसं कम शब्दमे कतेक बेसीसं बेसी अर्थ गढ़ैत छथि । वर्तमान आ भविष्यक एहि विशेषता कि विवशताकेँ चिन्हैत मैथिली रचनाकार छोट-छोट रचना दिस प्रवृत भेलाह अछि । एही क्रममे एखन चरिपतिया कविताक प्रचलन भेल अछि ।जेँ ई चरिपतिया सभ दोहा, सोरठा आदि नहि थिक अर्थात ओकर निश्चित परिभाषाक परिधिमे नहि अँटैत अछि तेँ सोझे चरिपतिया थिक । ओना नाम किछु आरो राखल जा सकैछ जेना गुलजार त्रिवेणी कि रवीन्द्रनाथ स्फुलिंग रखलनि । मुदा, एतबा स्वीकारबामे कोनो आपत्ति नहि हेबाक चाही जे चरिपतियो सभमे दोहा-सोरठाक आत्मा बसैत अछि ।
मैथिलीमे चरिपतिया लेखन नव नहि अछि बल्कि करीब सय वर्ष पूर्वहि कवीश्वर चन्दा झा अनेक चरिपतियाक रचना कयने छलाह, जे 'चन्द्र रचनावली'मे संग्रहितो अछि । एहिमेसं किछुकें सम्पादक खण्डित काव्य कहने छथि । उदाहरणार्थ चन्दा झाक दू टा चरिपतिया प्रेषित अछि :-
1.
अगणित अज्ञ मनुष हम वञ्चल
वनि वनि वाचक ज्ञानी ।
हाथ दराध माथ पर राखथि
ढोढ़क मन्त्र न जानी ।।
2.
आगम जोतिष तपक वल
पावि त्रिकालज्ञान ।
भावि आवि न दावि दे
कि करत मनुष महान ।। 
मुक्त छन्दावस्थामे कविता क्षेत्रमे सर्वाधिक प्रयोग भेलैए । आधुनिक मैथिली साहित्यमे सभसँ पैघ प्रयोगकर्ता चन्दे झा भेलाह । ताहिमे एकटा प्रयोग इहो कयलनि जे छन्दमुक्त छोट-छोट पदसभ लिखलाह (हुनकर पोथाक संदर्भ राखि इहो कहि सकैत छी जे-टिपलाह ) । उपरोक्त दुनू रचनामे हमरा कोनो छन्द नहि भेटल अछि । मात्र लय आ तुक'क अलावे । तेँ एहि रचना सभकेँ दोहा, आदि किछु कहब अनुचित होयत । एकटा आर महत्वपूर्ण तथ्य अछि जे ई दुनू रचना एहि रचनावलीमे 'प्रथमप्रकाशित' भेल अछि जे प्रायः संपादक डॉ. विशेश्वर मिश्रकेँ आचार्य रमानाथ झा जीसँ जे पाण्डुलिपि (कि पोथा) भेटल रहनि ताहिसँ उपराओल गेल होयत आ हम ई मानबाक लेल बाध्य छी जे एकरा चारि पाँतिमे ओहि पाण्डुलिपियेक आधारपर सजाओल गेल हेतैक । आब कने काल लेल जँ एकरा चरिपतिया नहि कहबै तँ काव्यशास्त्रक आधारपर कोन विधाक अंतर्गत राखब ? सेहो प्रश्ने अछि । संपादक दोसर रचनाक लेल 'खण्डित काव्यांश' सन किछु टिपैत छथि मुदा पहिलुक रचनाकेँ ओहो पूर्ण मानैत छथि, अर्थक दृष्टिएँ । इएह सभ आधार मानि हम एकरा मैथिली चरिपतियाक प्रारम्भिक रचना कहल अछि ।

हँ आइ जे चरिपतियाक प्रचलन बढ़ल अछि तकर एकटा नकारात्मकता अवश्य नजरि अबैत अछि जे जँ एकर लोकप्रियता बढ़त तँ दोहा-सोरठा आदिक लेखन भविष्यमे अप्रचलित भऽ जायत मुदा, फेर जँ सकारात्मक पक्ष देखी तँ, जँ एहू लाथे किछु नवतूरक लोक मैथिली भाषा-साहित्यसँ जुड़ैत छथि, कविता लेखन दिस प्रवृत होइत छथि तँ शनैः शनैः ई हुनक प्रवृतियो बनत आ निश्चिते किछु गुणवंत काव्यकलाप्रवीण काव्यशास्त्रीय कविता रचताह । पुरने फरमामे नवीन कथ्य गढ़िकऽ लोकप्रियताक शिखरपर चढ़ताह । अतः हम चरिपतियाक वर्तमान चलनिकेँ कोनो आन्दोलन (जेना कि श्री विभूति आनन्द जी अपन चरिपतिया शतकपूर्तिक उपलक्ष्यमे घोषित कयने छलाह) नहि मानैत छी किन्तु, काव्यक स्कूलमे प्रवेशक एकटा बाट अवश्य कहब ।

एतय चरिपतिया लेखककेँ सेहो काव्यशास्त्रमे प्रवीण आलोचक सभक आलोचना सहबाक सामर्थ्य होयब आवश्यक अछि । संगहि ओहि आलोचनाकेँ न्यूनतम करबाक हेतु प्रयास करैत, एकर निजगूत स्वर-स्वरूप'क निर्धारणक लेल निरंतर प्रयासरत रहय पड़तनि ।