Wednesday, May 27, 2015

चंदनक 'संभावना':-माछ नै मैगी जकां



विभूति आनंद
आइ रवि अछि । छुट्टीक दिन । सिरमा मे कतोक दिन सं राखल अछि 'संभावना' । चंदन जीक सद्यःप्रकाशित 'हाइकू' कविता-संग्रह । खंड-खंड मे एकरा पढि चुकल छी । मूल सं पूर्व  रमण जीक विस्तृत भूमिका । फेर हिंदी कवयित्री सारिकाक दुटप्पी । फेर चंदनक ।
जापानी हाइकू कें चंदन कुमार झा बहुत कलात्मक ढंग सं मैथिली मे हाइजैक कयलनि अछि । प्रयोगमे तें सफल छथि । आरंभ मे हमरा ई हाइकू अबूझ लागल । फेर हम प्रयोग कयल । जखन मोन मे आयल, दू-चारि पढि, राखि दी । फेर तकरा गूनी । एहिना करैत, पढैत पूरा पोथी पढि गेलहुं । तें कोना कही जे नीक नै  लागल ! नीक तं लगबे कयल । तखन, माछ नै मैगी जकां लागल । नीक लगबाक एक कारण ईहो जे दूरक ढोल सोहाओन कोना लगै छै, से देखी ।
हं, एकरा पढैत मैथिली मे एकटा आर प्रयोग मोन पडैत रहल ! प्रवासी जी (मार्कण्डेय प्रवासी) , एकटा देसी प्रयोग कैने रहथि, आ जकरा नाम देने रहथिन -'तदर्थ' ! ईहो तिनपतिया छल । एक पुस्तक सेहो आयल रहनि - 'एतदर्थ' ! प्रसंगवश भूमिका मे एकर उल्लेख रहितय, जे प्रायः नहि अछि, तं नीक ।
मुदा एतय हमर चिंता अछि जे की चंदनक प्रयासकें उत्साहित कैल जयबाक चाही कि नहि ? व्यक्तिगत रूप सं हम प्रयोगक
पक्षधर रहल छी । 'चरिपतिया' समक्ष अछि ।
अंतिम शब्द, 
चिरंजीवी चंदन कें अशेष शुभकामना, एहि लेल जे ई आजुक मैथिलीक ललाटक चंदन छथि !










 Posted on FB; 25th May 2015.

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