विभूति आनंद |
आइ रवि अछि । छुट्टीक दिन । सिरमा मे कतोक दिन सं राखल अछि 'संभावना'
। चंदन जीक सद्यःप्रकाशित 'हाइकू' कविता-संग्रह । खंड-खंड मे एकरा पढि चुकल छी । मूल सं
पूर्व रमण जीक विस्तृत भूमिका । फेर हिंदी कवयित्री सारिकाक दुटप्पी ।
फेर चंदनक ।
जापानी हाइकू कें चंदन कुमार झा बहुत कलात्मक ढंग सं मैथिली मे हाइजैक कयलनि अछि । प्रयोगमे तें सफल छथि । आरंभ मे हमरा ई हाइकू अबूझ लागल । फेर हम प्रयोग कयल । जखन मोन मे आयल, दू-चारि पढि, राखि दी । फेर तकरा गूनी । एहिना करैत, पढैत पूरा पोथी पढि गेलहुं । तें
कोना कही जे नीक नै लागल ! नीक तं लगबे कयल । तखन, माछ नै मैगी जकां
लागल । नीक लगबाक एक कारण ईहो जे दूरक ढोल सोहाओन कोना लगै छै, से देखी ।
हं, एकरा पढैत मैथिली मे एकटा आर प्रयोग मोन पडैत रहल ! प्रवासी जी (मार्कण्डेय प्रवासी) , एकटा देसी
प्रयोग कैने रहथि, आ जकरा नाम देने रहथिन -'तदर्थ' ! ईहो तिनपतिया छल । एक पुस्तक सेहो आयल रहनि - 'एतदर्थ' ! प्रसंगवश भूमिका मे एकर उल्लेख रहितय, जे प्रायः नहि अछि, तं नीक ।
मुदा एतय हमर चिंता अछि जे की
चंदनक प्रयासकें उत्साहित कैल जयबाक चाही कि नहि ? व्यक्तिगत
रूप सं हम प्रयोगक
पक्षधर रहल छी । 'चरिपतिया' समक्ष अछि ।
अंतिम शब्द, पक्षधर रहल छी । 'चरिपतिया' समक्ष अछि ।
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