वर्तमान
समयमे जखन महाकाव्य प्रबंधकाव्य लिखब-पढब अप्रचलित,असुभितगर
भेल जा रहल अछि, लघुआकारक काव्यविधा सभपर विमर्श उचित बुझना
जाइछ । कखनोकाल एहनो लगैए जे भविष्यमे कोनो कविक सामर्थ्य एहिसं नापल जायत जे ओ
कतेक कमसं कम शब्दमे कतेक बेसीसं बेसी अर्थ गढ़ैत छथि । वर्तमान आ भविष्यक एहि
विशेषता कि विवशताकेँ चिन्हैत मैथिली रचनाकार छोट-छोट रचना दिस प्रवृत भेलाह अछि ।
एही क्रममे एखन चरिपतिया कविताक प्रचलन भेल अछि ।जेँ ई चरिपतिया सभ दोहा, सोरठा आदि नहि थिक अर्थात ओकर निश्चित परिभाषाक परिधिमे नहि अँटैत अछि तेँ
सोझे चरिपतिया थिक । ओना नाम किछु आरो राखल जा सकैछ जेना गुलजार त्रिवेणी कि
रवीन्द्रनाथ स्फुलिंग रखलनि । मुदा, एतबा स्वीकारबामे कोनो
आपत्ति नहि हेबाक चाही जे चरिपतियो सभमे दोहा-सोरठाक आत्मा बसैत अछि ।
मैथिलीमे
चरिपतिया लेखन नव नहि अछि बल्कि करीब सय वर्ष पूर्वहि कवीश्वर चन्दा झा अनेक
चरिपतियाक रचना कयने छलाह, जे 'चन्द्र रचनावली'मे संग्रहितो अछि । एहिमेसं किछुकें सम्पादक खण्डित काव्य कहने छथि ।
उदाहरणार्थ चन्दा झाक दू टा चरिपतिया प्रेषित अछि :-
1.
अगणित अज्ञ
मनुष हम वञ्चल
वनि वनि
वाचक ज्ञानी ।
हाथ दराध
माथ पर राखथि
ढोढ़क
मन्त्र न जानी ।।
2.
आगम
जोतिष तपक वल
पावि
त्रिकालज्ञान ।
भावि आवि
न दावि दे
कि करत
मनुष महान ।।
मुक्त
छन्दावस्थामे कविता क्षेत्रमे सर्वाधिक प्रयोग भेलैए । आधुनिक मैथिली साहित्यमे
सभसँ पैघ प्रयोगकर्ता चन्दे झा भेलाह । ताहिमे एकटा प्रयोग इहो कयलनि जे छन्दमुक्त
छोट-छोट पदसभ लिखलाह (हुनकर पोथाक संदर्भ राखि इहो कहि सकैत छी जे-टिपलाह ) ।
उपरोक्त दुनू रचनामे हमरा कोनो छन्द नहि भेटल अछि । मात्र लय आ तुक'क अलावे । तेँ एहि रचना सभकेँ दोहा, आदि किछु कहब
अनुचित होयत । एकटा आर महत्वपूर्ण तथ्य अछि जे ई दुनू रचना एहि रचनावलीमे 'प्रथमप्रकाशित' भेल अछि जे प्रायः संपादक डॉ.
विशेश्वर मिश्रकेँ आचार्य रमानाथ झा जीसँ जे पाण्डुलिपि (कि पोथा) भेटल रहनि
ताहिसँ उपराओल गेल होयत आ हम ई मानबाक लेल बाध्य छी जे एकरा चारि पाँतिमे ओहि
पाण्डुलिपियेक आधारपर सजाओल गेल हेतैक । आब कने काल लेल जँ एकरा चरिपतिया नहि कहबै
तँ काव्यशास्त्रक आधारपर कोन विधाक अंतर्गत राखब ? सेहो
प्रश्ने अछि । संपादक दोसर रचनाक लेल 'खण्डित काव्यांश'
सन किछु टिपैत छथि मुदा पहिलुक रचनाकेँ ओहो पूर्ण मानैत छथि,
अर्थक दृष्टिएँ । इएह सभ आधार मानि हम एकरा मैथिली चरिपतियाक
प्रारम्भिक रचना कहल अछि ।
हँ आइ जे
चरिपतियाक प्रचलन बढ़ल अछि तकर एकटा नकारात्मकता अवश्य नजरि अबैत अछि जे जँ एकर
लोकप्रियता बढ़त तँ दोहा-सोरठा आदिक लेखन भविष्यमे अप्रचलित भऽ जायत मुदा, फेर जँ सकारात्मक पक्ष देखी तँ, जँ एहू लाथे किछु
नवतूरक लोक मैथिली भाषा-साहित्यसँ जुड़ैत छथि, कविता लेखन
दिस प्रवृत होइत छथि तँ शनैः शनैः ई हुनक प्रवृतियो बनत आ निश्चिते किछु गुणवंत
काव्यकलाप्रवीण काव्यशास्त्रीय कविता रचताह । पुरने फरमामे नवीन कथ्य गढ़िकऽ
लोकप्रियताक शिखरपर चढ़ताह । अतः हम चरिपतियाक वर्तमान चलनिकेँ कोनो आन्दोलन (जेना
कि श्री विभूति आनन्द जी अपन चरिपतिया शतकपूर्तिक उपलक्ष्यमे घोषित कयने छलाह) नहि
मानैत छी किन्तु, काव्यक स्कूलमे प्रवेशक एकटा बाट अवश्य कहब
।
एतय
चरिपतिया लेखककेँ सेहो काव्यशास्त्रमे प्रवीण आलोचक सभक आलोचना सहबाक सामर्थ्य
होयब आवश्यक अछि । संगहि ओहि आलोचनाकेँ न्यूनतम करबाक हेतु प्रयास करैत, एकर निजगूत स्वर-स्वरूप'क निर्धारणक लेल निरंतर
प्रयासरत रहय पड़तनि ।
No comments:
Post a Comment