Wednesday, May 27, 2015


"पचमेर" मधुप जीक १९४९ ई.मे प्रकाशित गीत-संग्रह थिकनि । एहिमे कुल ३७ गोट गीत संकलित अछि । श्रृंगार-भजनक अलावे एहि संग्रहक गीत सभमे सामाजिक रूढ़ि, जड़ता आ राजनैतिक छल-छद्मपर सेहो प्रहार कएल गेल अछि । एहि संग्रहक प्रायः सर्वाधिक लोकप्रिय गीत - हम जेबै कुशेश्वर भोर... थिक । ई गीत ओहि समयक थिक जहिया देशमे स्वतंत्रता टटका रहैक । मुदा एहि स्वतंत्रताक अवधारणामे महिला'क आत्मनिर्भता फरिच्छ नहि रहैक । मिथिलामे तँ एकदम्मे नहि । किन्तु "मधुप" जीक दृष्टि कतेक फरिच्छ रहनि, तत्कालीन सामाजिकतासँ हुनकर प्रतिवादो कतेक रसगर रहन्हि से एहि गीतक निम्न पाँती सभसँ अटकर लगाओल जा सकैछः-
"नहि संग पुरुषकेँ लै जेबै
जे इच्छा से किनि-किनि लेबै
युग भेल स्वतन्त्र, ककर ककरा छै भारा...
हम जेबै कुशेश्वर भोर
रंगि कै ठोर पहिरिकेँ काड़ा
झनकाय झनाझन छाड़ा...."
गीतांश,सौजन्यः- मधुपजीक बीछल बेरायल कविता, संपादक-फूलचन्द्र झा 'प्रवीण' 

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