Saturday, June 6, 2015

धरतीसँ अकास धरि

समकालीन मैथिली साहित्यमे युवा कवि लोकनिमे चंदनकुमार झा विशिष्ट ओ सशक्त हस्ताक्षरके रुपमे द्रुत गतिसं उभरि कए समुपस्थित भेलाह अछि । कवि चंदनकुमार जीक पहिल कविता - संग्रह "धरतीसँ अकास धरि" मानवीय  संवेदना  मूल्यकें  सुस्थापित करबाक समीचीन आह्वान, मानव  हृदयक विविध भाव-भंगिमा, भाषा, समाज, संस्कृतिक संरक्षण  आ अनुरक्षण पर चिन्तन - मनन, सामाजिक सरोकारादिक एकटा उत्कृष्ट काव्यात्मक अभिव्यक्ति अछि । हुनकर कवितामे  सहजता,  सरलता, भाव-सम्पृक्तता, स्वाभाविकता, प्रेम-पल्लवक कोमलता, मिथिला माइट-पाइनक सुगंध, समयसं लड़बाक अभिरुचि,  विषम परिस्थितिकें स्वीकार्य करबाक क्षमता आदि व्यक्त-अभिव्यक्त कयल गेल अछि । मोनमे उठैत भावकें सहजे कहि देल गेल अछि ।

चंदनजी अपन कविताक माध्यमे धरतीपर पसरल जंगल आ जंजालक मध्य ससरैत
 'भ्रम' 'गनगोआरि',ललकारा दैत 'भय' 'बिहाड़ि'क बादो 'फ़ेर हेतैक भोर' 'आस'केर 'दीप' जरा कए रखने छैथ । सुन्नर भविष्यक सपनाके साकार करबाक वास्ते कविमनमे 'पोथी पतरा पढैत कालो' 'आत्माक विलाप', 'मोनक बात', 'मोनमे उठैत प्रश्न'क उत्तर तकबाक प्रयासमे हुनक दृष्टि कखनो मिथिलागाम दिस त' कखनो मुम्बई महानगरीक चौक-चौराहा 'मरीन ड्राइव' चलि जायत अछि । बदलैत ग्राम्य- व्यवस्थाक बादो, मातृभूमिक रक्षार्थ सदति तैयार सपूतकें 'शत शत नमन'क लेल नतमस्तक चंदनक मोनमे 'कर्मफ़लक प्राप्ति', 'जीवन-यात्रा' नीति संग प्रारंभ करबाक  नैतिकताक बोध करा रहल छैथ । कविता संग्रह आद्योपान्त पढला पर एहन बुझना जा रहल अछि जे संवेदनशील कवि चंदनजी 'जीवन पथ' पर चलबाक क्रममे 'करजा', 'बालु' ' अनधन अनेरुआ' सबके आत्मसात-स्वीकार करैत, जीवनक कटु यथार्थसं समझौता करैत अपन वेदनाके संवेदनशीलताक  संग 'छटपटाइत कविता' मे उत्सर्ग क' देने छैथ । कविमनमे बेर बेर उठैत 'जीवन-कथा' 'अनुत्तरित प्रश्न' 'महाप्रकाशक प्रति' जागल कवित्त भावक अभिव्यक्तिक संग उत्तरित भ' गेल अछि । कबित्तक बोध भ' गेला पर कवि 'बंद कलम'के खोलि क' भोरका कथा'क लेल मानवीय मूल्यक अवमूल्यन, वर्ग-संघर्ष, वहु-विषमताके विरुद्ध  'विद्रोह' स्वर मुखरित क' रहल छैथ । चेतना जागरणक वास्ते हुनकर मोनमे 'जरैत अछि दीप' जाहिसं 'डरबैछ राति'क अन्हरियाके भगाकए सत्यमेव जयतेक महागानक संग'  'सुखद भविष्यक आस' जागल बुझना जा रहल अछि।सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक विद्रूपताक तथाकथित 'विदूषक' केर 'लौल'के ' अकान' करैत'लोकतंत्रक परिधिमे' सेन्ह मारिक' भ्रष्ट जनतंत्रक तमाशा देखावल गेल अछि 'धरती सं अकास धरि' । अपन कविताक मादे जीवनक मर्मस्पर्शी अनुभूतिक संगहि नारी- मात्रृप्रेमक बात धएने चंदनजी  ' धिया-पुता केर/ आंग-समांगक चिन्तामे मग्न ''मैय्या'क बहन्ने बूढ-पुरैनक दयनीय स्थिति पर अपन चिन्ता सेहो व्यक्त करैत छैथ।


अर्थबाद ओ बाजारबादक बाढिसं कटि रहल महत मिथिला, मधुर  मैथिली मैथिली भाखाप्रेमी आदिके ठामेठाम रोकबाक सचेष्ट प्रयास अछि चंदन जीक  "धरतीसँ अकास धरि" । कविता-संग्रह्मे समाहित रचना सामयिक,संवेदनशील, मर्मस्पर्शी, प्रभावशाली आ सकारात्मक अछि। किछु खांटी मैथिली शब्दक प्रयोग पाठक मनमे सहजे मिथिलाके समुपश्थित क' दैत अछि। ग्राम्य-परिवेशक खींचल प्राकृतिक दृश्य मनोहारी अछि। कवितामे भाव-गाम्भीर्यक परिदर्शन होयत अछि । अपन अपार शब्द-सम्पदा, वाक्य-विन्यास, बिम्ब-विधान, भावाभिव्यक्तिक क्षमताक, सरस, सरल, प्रांजल भाषाक अभिनव प्रयोगक ब'ले चंदनक नाम मैथिली साहित्यमे स्वर्णाक्षरमे अंकित-प्रत्यंकित बस्सेटा होयत, ई हमर पूर्ण विश्वास अछि।
शुभकामना सहित,

भास्करानन्द झा भास्कर